ग़ज़ल पत्रिका By Dr Varsha Singh
सुन्दर काव्य रचना , सामयिक भी
मेघ में भीग कर इसका भी आनंद लिया जाये ...
बहुत सुन्दर रचना....बहुत कुछ कहतीं हैं ये चंद पंक्तियाँ.....सादरअनु
behtreen
आभा द स्प्लेंडर में प्रकाशित ८ लाइन आपको समर्पित जिन्हें पहले आपके लिए कमेन्ट के रूप में मुकद्दर की लकीरों को बदलना सीख ले राहीदेखना खुद ही एक दिन उगेंगे पंख सोने के ..है काम कायर का झुकाना सिर उठाकर फिरइबादत में उठाया हाथ आसमां थाम लेता है ..
बारिश में भीगते हुए काश इसे पढ़ना सम्भव होता तो मज़ा ही और होता.
कई भावो को समेटे बेहतरीन रचना:-)
वाह, बात गहरी है..
वाह ! बहुत सुन्दर पंक्तियाँ . देश की आम जनता ऐसे ही आनंद लेती है .
वाह ! बहुत सुन्दर... सादर।
बहुत खूब ... सच है छाता नहीं तो भीगना तो है ... पर उसको जिया जाय तो क्या बात .... लाजवाब शेर ...
चित्र को सुंदर अभिव्यक्ति मिली।
सुन्दर काव्य रचना , सामयिक भी
जवाब देंहटाएंमेघ में भीग कर इसका भी आनंद लिया जाये ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना....
जवाब देंहटाएंबहुत कुछ कहतीं हैं ये चंद पंक्तियाँ.....
सादर
अनु
behtreen
जवाब देंहटाएंआभा द स्प्लेंडर में प्रकाशित ८ लाइन आपको समर्पित जिन्हें पहले आपके लिए कमेन्ट के रूप में
जवाब देंहटाएंमुकद्दर की लकीरों को बदलना सीख ले राही
देखना खुद ही एक दिन उगेंगे पंख सोने के ..
है काम कायर का झुकाना सिर उठाकर फिर
इबादत में उठाया हाथ आसमां थाम लेता है ..
बारिश में भीगते हुए काश इसे पढ़ना सम्भव होता तो मज़ा ही और होता.
जवाब देंहटाएंकई भावो को समेटे
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना:-)
वाह, बात गहरी है..
जवाब देंहटाएंवाह ! बहुत सुन्दर पंक्तियाँ .
जवाब देंहटाएंदेश की आम जनता ऐसे ही आनंद लेती है .
वाह ! बहुत सुन्दर...
जवाब देंहटाएंसादर।
बहुत खूब ... सच है छाता नहीं तो भीगना तो है ... पर उसको जिया जाय तो क्या बात .... लाजवाब शेर ...
जवाब देंहटाएंचित्र को सुंदर अभिव्यक्ति मिली।
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