मंगलवार, अगस्त 22, 2017
सोमवार, अगस्त 21, 2017
ख़्वाब हमारे अपने हैं....
दिल में डेरा डाले हैं ।
यादों के उजियाले हैं ।
हम तुम जब भी साथ हुए
पल वो बड़े निराले हैं ।
छोटे - छोटे लम्हे भी
बेहद ख़ुशियों वाले हैं ।
ख़्वाब हमारे अपने हैं
मिल जुल हमने पाले हैं ।
ग़म से "वर्षा" डरना क्या
ग़म तो देखे- भाले हैं ।
- डॉ वर्षा सिंह
गुरुवार, अगस्त 17, 2017
यादों के ठिकाने....
कभी सोते हुए
कभी जागते हुए
अचानक, अप्रयास
सामने आ जाती हैं
बीते हुए दिनों की कतरनें
यादों के ठिकाने
पता नहीं कहां- कहां होते हैं
- डॉ वर्षा सिंह
यादों के ठिकाने
कुछ लिफाफे
कुछ टिकटें
कुछ पुरानी चिट्ठियां
कुछ तस्वीरें
और कुछ डायरी के पन्ने
यादों के ठिकाने
पता नहीं कहां- कहां होते हैं
- डॉ वर्षा सिंह
बुधवार, अगस्त 16, 2017
भीड़ है
हम जहां पर हैं वहां विज्ञापनों की भीड़ है।
मोहपाशी छद्म के आयोजनों की भीड़ है।
अब नहीं पढ़ना सहज सम्पूर्णता से कुछ यहां,
मिथकथाओं की अपाहिज कतरनों की भीड़ है।
किस तरह से हो सकेगा सर्वजनहित का कलन,
व्यक्तिगत रेखागणित के गोपनों की भीड़ है ।
शब्द कैसे हों प्रतिष्ठित, आइए सोचें जरा,
व्यर्थ की संकेत बुनते मायनों की भीड़ है।
"रात है" कह कर नहीं हल हो सकेगा कुछ यहां ,
रोशनी लाओ, अंधेरे बंधनों की भीड़ है।
टूटती अवधारणायें सौंप जाती हैं चुभन,
हर कदम रखना संभलकर, फिसलनों की भीड़ है।
श्रावणी लय से न "वर्षा" हो कहीं जाना भ्रमित,
छल भरे सम्मोहनी संबोधनों की भीड़ है।
- डॉ वर्षा सिंह
मंगलवार, अगस्त 15, 2017
आज़ादी
संघर्षों के बाद मिली है आज़ादी
दिल की ले कर चाह पली है आज़ादी
हम भारत के लोग बढ़ाते क़दम जहां
परचम ले कर साथ चली है आज़ादी
- डॉ वर्षा सिंह
On this occasion of #IndependenceDay let us celebrate , Remember that #Freedom is not Free.
#Independenceday2017
#Independenceday2017India
Interview of Dr Vidyawati "Malvika"
प्रिय मित्रों,
आज "पत्रिका" समाचार पत्र के स्वतंत्रता दिवस अंक में हिन्दी की वरिष्ठ साहित्यकार एवं मेरी माता जी डॉ. विद्यावती "मालविका" का साक्षात्कार प्रकाशित हुआ है... Please read & share.
धन्यवाद "पत्रिका" समाचार पत्र !!!!!
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