आज बदली हुई सी सरगम है
सिर उठाने लगा हर इक ग़म है
पढ़ न पाओगे भाव चेहरे के
रोशनी भी यहां ज़रा कम है
दे रहा था जो वास्ता दिल का
हाथ में आज उसके परचम है
घाव जिसने दिया है तोहफे में
दे रहा शख़्स वो ही मरहम है
यूं तो ख़ामोश घटायें "वर्षा"
आंख भीगी, हवा हुई नम है
- डॉ वर्षा सिंह
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