नया रंग जीवन में भरती क़िताबें 📗
कड़ी धूप में छांह बनती क़िताबें 📙
सफ़ह दर सफ़ह अक्षरों को सजाती,
दुनिया को सतरों से बुनती क़िताबें 📘
अजब रोशनी सी बिखरती हमेशा,
तिलस्मी झरोखों सी खुलती क़िताबें 📖
जब भी सताती हैं यादें पुरानी ,
नयी इक कहानी सी कहती क़िताबें 📕
"वर्षा" क़िताबों से है प्यार जिनको,
दिलों-जां से उनको लुभाती क़िताबें 📒
📚- डॉ. वर्षा सिंह
आपकी लिखी रचना "मुखरित मौन में" शनिवार 05 जनवरी 2019को साझा की गई है......... https://mannkepaankhi.blogspot.com/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार🙏
हटाएंबहुत सुन्दर ! इस गैजेट्स के ज़माने में हम किताबों से दूर क्या हुए, ज़िन्दगी से ही दूर हो गए. हमारी ज़िन्दगी मशीनी हो गई और हमारे जज़्बात, हमारी भावनाएं, हमारी संवेदनाएं भी जैसे किसी कम्प्युटर से संचालित होने लगे हैं. सबसे दुःख की बात तो यह है कि किताबों के बगैर हमारे बच्चे अब बच्चे नहीं रहे.
जवाब देंहटाएंटिप्पणी करने के लिए बहुत बहुत आभार🙏
हटाएंबहुत ही सुन्दर रचना 👌
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार🙏
हटाएंसुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंवाह बहुत सुन्दर कहा आपने!
जवाब देंहटाएंपर बस अब ये किताबें भी बेचारी होती जा रही है।
जी, सही कहा आपने
हटाएंबहुत बहुत आभार🙏