प्रिय ब्लॉग पाठकों, आज इस "ग़ज़लयात्रा" में प्रस्तुत है ग़ज़ल को ही समर्पित मेरी यह ग़ज़ल ....
ज़िन्दगी है ग़ज़ल
- डॉ. वर्षा सिंह
स्याह रातों में इक रोशनी है ग़ज़ल
धूप में छांह बन कर मिली है ग़ज़ल
भिन्न मिसरे बंधे एक ही डोर से
एकता की अनोखी लड़ी है ग़ज़ल
फ़ासलों में दिलासा दिलाती है ये
वस्ल की वादियों में नदी है ग़ज़ल
दिल के बहलाव का सिर्फ़ सामान है
तो किसी के लिए ज़िन्दगी है ग़ज़ल
क़ाफ़ियों से रदीफ़ों की है दोस्ती
हर बहर में संवर कर सजी है ग़ज़ल
दर्द-दुख है, समस्या ज़माने की है
लोग कहते इसे ये नयी है ग़ज़ल
धर्म की, जाति की बेड़ियों से परे
हर ज़ुबां को ये अपनी लगी है ग़ज़ल
वक़्त के साथ हरदम बदलती रही
वक़्त की नब्ज़ की डायरी है ग़ज़ल
तंज़ बन कर हुकूमत की आंखों चुभी
इश्क़ बन आंधियों में पली है ग़ज़ल
खुरदुरे रास्तों को लगाती गले
रेशमी ख़्वाब ले कर चली है ग़ज़ल
ज़ुल्म का सामना डट के करती रही
बेबसी में सहारा बनी है ग़ज़ल
घुंघरुओं की है रुनझुन सुनाती कभी
पीर-दरगाह में नात भी है ग़ज़ल
ये है क़ुर्बानियों की अजब दास्तां
हीर है तो कभी, सोहनी है ग़ज़ल
दी जो आवाज़ "बिस्मिल", भगत सिंह ने
बांध सिर पर कफ़न फिर उठी है ग़ज़ल
अब वो पहले सी सीमित नहीं जाम में
अब हक़ीक़त के दर पर खड़ी है ग़ज़ल
साज संतूर हो, या कि हो बांसुरी
दिल की घड़कन में हरदम बजी है ग़ज़ल
हाशिए में खड़े आमजन के लिए
अब तो बेशक मसीहा बनी है ग़ज़ल
महफ़िलों से निकल कर गली-गांव में
खेत-चौपाल में आ गयी है ग़ज़ल
बूढ़े मां बाप की फ़िक्र है गर इसे
खिलखिलाती सी नन्हीं परी है ग़ज़ल
फ़ारसी, अरबी, उर्दू से हिन्दी हुई
अब बुंदेली के रंग में रंगी है ग़ज़ल
मीर, ग़ालिब से दुष्यंत के बाद तक
आज "वर्षा" के दिल में बसी है ग़ज़ल
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प्रिय मित्रों, ग़ज़ल को समर्पित मेरी ग़ज़ल "ज़िन्दगी है ग़ज़ल" आज दिनांक 20.09.2020 को वेब मैगज़ीन "युवाप्रवर्तक" में प्रकाशित हुई है।
हार्दिक आभार युवाप्रवर्तक 🙏💐🙏
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#युवाप्रवर्तक #ग़ज़ल #ज़िन्दगी #ग़ज़लवर्षा
सुन्दर
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद सुशील कुमार जोशी जी 🙏
हटाएंबहुत-बहुत सुंदर ....
जवाब देंहटाएंइस गजल की हर पंक्ति नायाब है।
पहल करते हो तुम, होते है हम सजल,
बात करते हो तुम, जिसे कहते हैं गजल।।
बधाई व शुभकामनाएँ आदरणीया।
पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा जी, आपके प्रति बहुत आभार 🙏
हटाएंकृपया लिंक देने का कष्टट करें। यह शेर जिस ग़ज़ल में शामिल है, उस पूरी ग़ज़ल को पढ़ना चाहूंगी।
पहल करते हो तुम, होते है हम सजल,
बात करते हो तुम, जिसे कहते हैं गजल।।
बहुत सधी और अपने में यह एक मुकम्मल गजल है आपकी | हर शेर वजनदार और अपना असर छोड़ने वाला है |बहुत बहुत बधाई व शुभ कामनाएं |
जवाब देंहटाएंउम्दा अशआरों से सजी-सँवरी सुन्दर ग़ज़ल।
जवाब देंहटाएंआपने सराहा, यह मेरे लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है आदरणीय 🙏
हटाएंहार्दिक आभार मेरी ग़ज़ल को सराहने हेतु आदरणीय शास्त्री जी 🙏
हटाएंआदरणीया वर्षा सिंह जी!
जवाब देंहटाएंआपके पुत्र को शुभाशीष और आपको बधाई हो।
मेरा पुत्र ? क्षमा करें... मैं तो अविवाहित हूं आदरणीय 🙏
हटाएंआपकी इस बधाई को स्वीकार कर पाना मेरे लिए सम्भव नहीं है आदरणीय 🙏
हटाएंक्षमा करें 🙏
आदरणीया वर्षा सिंह जी!
जवाब देंहटाएंआपके पुत्र को शुभाशीष और जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ।
आपको बधाई हो।
सम्भवतः आपको कतिपय भ्रम हुआ है आदरणीय 🙏
हटाएंमेरे अविवाहित होने के कारण मेरा पुत्र कोई नहीं।
यदि "वसुधैव कुटुम्बकम्" की दृष्टि से देखें तो इस धरती पर जन्में मुझसे वय में छोटे सभी पुरुष आयु के अनुसार मेरे अनुज अथवा पुत्र हैं।
क्या बात है ! हर शेर अपनी कहानी कहता है वर्षा जी | सस्नेह शुभकामनाएं|
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद रेणू जी 🙏
हटाएंKhoobsurat
जवाब देंहटाएंबहुत धन्यवाद हिंदेश सिंह जी 🙏💐🙏
हटाएंग़ज़ल क्या क्या हो सकती है
जवाब देंहटाएंसब है इस ग़ज़ल की ग़ज़ल में।
बहुत खूबसूरत।
पधारें नई रचना पर 👉 आत्मनिर्भर
हार्दिक धन्यवाद रोहितास जी 🙏
हटाएंआपकी पोस्टपर पहुंच रही हूं। आप तो हमेशा ही बहुत अच्छा लिखते हैं।
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (22-9 -2020 ) को "काँधे पर हल धरे किसान"(चर्चा अंक-3832) पर भी होगी,आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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कामिनी सिन्हा
चर्चा मंच में मेरी पोस्ट को शामिल करने हेतु हार्दिक आभार 🙏
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंशुक्रिया तहे दिल से "चंद्रोदयम" 🙏😊
हटाएंसुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद ओंकार जी 🙏
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