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Dr. Varsha Singh |
दौर आज का
- डॉ. वर्षा सिंह
समय भूमिका लिखता है ख़ुद, और समापन भी
जीवन के हर पल को देता है वह इक ज्ञापन भी
ये जो पत्ती हरी हुई है, फूल गुलाबी-से
ये चर्चाएं हैं मौसम की और विज्ञापन भी
दौर आज का यक्ष सरीखा 'कैटवॉक' करता
उसके सभी पुरातन में है एक नयापन भी
औरों ने जो समझाया, यदि समझ नहीं आया
करना होगा बेशक खुद ही अब अध्यापन भी
ख़ूब परायापन झेला है अपनों के द्वारा
लेकिन ग़ैरों से पाया है कुछ अपनापन भी
लिया हुआ है व्रत यदि अपने हठ पर चलने का
यह मत भूलो, करना होगा फिर उद्यापन भी
"वर्षा" की बूंदों में शामिल जीवन का जल है
अंजुरी में भरकर, कर डालो उसका मापन भी
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(मेरे ग़ज़ल संग्रह "सच तो ये है" से)