शुक्रवार, नवंबर 27, 2020

कहां आ गए | ग़ज़ल | डॉ. वर्षा सिंह

ग़ज़ल


कहां आ गए

- डॉ. वर्षा सिंह


हम कहां से चले थे कहां आ गए 

सोचिए तो जरा दर्द क्यों भा गए 


बूंद बरसी न फूलों लदी डालियां

फूल खिलने से पहले ही मुरझा गए 


लोग फसलें उगाने चले रेत में 

खेत में तो बबूलों के दिन आ गए


उनसे उम्मीद थी कुछ कहेंगे नया 

बात मेरी वही आज दोहरा गए


आंधियां दहशतों की चलीं इस कदर 

त्रास के मेघ काले घने छा गए 


अब कहां है वो 'चाणक्य' जो ज्ञान दे

'नंद' विजयी हुआ, मात हम खा गए


पूजिए पूजना है जिसे आपको 

हम तो "वर्षा" ज़माने से उकता गए


#ग़ज़लवर्षा #ग़ज़ल #कहां_आ_गए


15 टिप्‍पणियां:

  1. पूजिए पूजना है जिसे आपको
    हम तो "वर्षा" जमाने से उकता गए
    अन्तस् को छूती गहन अभिव्यक्ति । लाज़वाब ग़ज़ल ।


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  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (29-11-2020) को  "असम्भव कुछ भी नहीं"  (चर्चा अंक-3900)   पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    --   
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    --
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --

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    उत्तर
    1. हार्दिक धन्यवाद आभार आदरणीय शास्त्री जी 🙏

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  3. वाह!!!
    लाजवाब गजल...।
    उनसे उम्मीद थी कुछ कहेंगे नया
    बात मेरी वही आज दोहरा गए
    बहुत ही सुन्दर।

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  4. बहुत धन्यवाद ओंकार जी 🙏

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