मेरी ग़ज़ल को web magazine युवा प्रवर्तक के अंक दिनांक 10 जुलाई 2019 में स्थान मिला है।
युवा प्रवर्तक के प्रति हार्दिक आभार 🙏
मित्रों, यदि आप चाहें तो पत्रिका में इसे इस Link पर भी पढ़ सकते हैं ...
http://yuvapravartak.com/?p=16573
बारिशों के दिन
- डॉ. वर्षा सिंह
आए बारिशों के दिन।
बहकती ख़्वाहिशों के दिन।
भीगा है धरा का तन
गए अब गर्दिशों के दिन।
नदी चंचल, हवा बेसुध
नहीं अब बंदिशों के दिन।
लता झाड़ी गले मिलती,
भुला कर रंजिशों के दिन।
हुई "वर्षा," हुए पूरे
सुलह की कोशिशों के दिन।
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#ग़ज़लवर्षा
आए बारिशों के दिन... ग़ज़ल - डॉ. वर्षा सिंह # ग़ज़लयात्रा |
बहुत बहुत हार्दिक आभार आदरणीय डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' जी 🙏
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