यूं तो पिछले अनेक वर्ष से मैं हिंदी गजल लिख रही हूं। अभी तक हिन्दी ग़ज़ल की आलोचना पर एक पुस्तक और मेरे 5 गजल संग्रह प्रकाशित भी हो चुके हैं किंतु आजीविका की व्यस्तता के चलते नये संग्रह के प्रकाशन में व्यवधान आया। लेकिन लेखन ज़ारी रहा। सोशल मीडिया पर भी सतत रूप से मैं अपनी गजलों देती रही हूं।
मेरे ग़ज़ल संग्रह - सर्वहारा के लिए
वक़्त पढ़ रहा है
हम जहां पर हैं
सच तो ये है
दिल बंजारा
मेरे ग़ज़ल संग्रह - सर्वहारा के लिए
वक़्त पढ़ रहा है
हम जहां पर हैं
सच तो ये है
दिल बंजारा
आलोचना पुस्तक - हिन्दी ग़ज़ल : दशा और दिशा
मेरी ग़ज़लों पर ख्यातनाम समीक्षकों ने समय-समय पर जो टिप्पणियां कीं हैं उनमें से कुछ यहां दे रही हूं….
मेरी ग़ज़ल पर टिप्पणियां ....
जनपक्षधरता वर्षा सिंह की खास पहचान है । शायरा का अनुभवसंसार भी व्यापक है इसलिए इनकी ग़ज़लें सिर्फ आधी आबादी तक ही सीमित नहीं है बल्कि पूरा समाज है इनकी ग़ज़लों में, पूरी दुनिया और पूरा आसमान है इनकी ग़ज़लों में । - अनिल विभाकर, कवि एवं साहित्यकार, हिंदुस्तान 30 दिसंबर 2000 को प्रकाशित
वर्षा सिंह हिंदी गजल विधा की एक चर्चित हस्ताक्षर है और इन दिनों काफी अच्छी हिंदी ग़ज़लें लिख ही नहीं रही बल्कि पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से छप भी रही हैं। वर्षा सिंह की प्रत्येक गजल आज की परिस्थिति को यथार्थ वादिता के साथ प्रदर्शित करने में सक्षम है- नरेंद्र कुमार सिंह, समय सुरभि, अंक 17
वर्षा सिंह समकालीन हिंदी गजल के क्षेत्र में तेजी से उभरा हुआ हस्ताक्षर हैं। उन्होंने वस्तु और शैली दोनों ही स्तरों पर गजल को समृद्ध बनाया है तथा दुष्यंत कुमार की परंपरा में नई ग़ज़ल भाषा इजाद करने वाली कवयित्री के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त की है - ऋषभ देव शर्मा, गोलकोंडा दर्पण फरवरी 2001
डॉ. वर्षा सिंह लगभग 30 वर्षों से गजलें कह रही हैं और कवि सम्मेलन व मुशायरे में बहुचर्चित नाम हैं। इनकी गजलों में रिश्तों की ऊष्मा और परिवार के बीच की भावात्मकता का मार्मिक चित्रण मिलता है । इन्होंने माता पिता बेटी बूढ़ी मां आदि संबंधों को लेकर उन्हें रदीफ़ों में ढाल कर अनेक लोकप्रिय ग़ज़लें कही हैंं - हरेराम 'समीप', समकालीन महिला ग़ज़लकार 2017
ग़ज़ल संग्रह... सर्वहारा के लिये - डॉ. वर्षा सिंह |
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आलोचना... हिन्दी ग़ज़ल : दशा और दिशा |
..... और अपने ग़ज़ल लेखन पर मेरा संक्षिप्त आत्मकथ्य.....
हिंदी पद्य साहित्य की एक अनन्यतम मनोहारी छवि वाली विधा बन कर उभरी इस हिंदी गजल की विधा को अपनाकर मुझे बेहद आत्म संतोष मिला और लगातार संघर्षरत जीवन जीते हुए चिंतन एवं संवेदनाओं के गहरे तालमेल से जन्मे अपने विचारों को मैंने हिंदी ग़ज़ल के माध्यम से अभिव्यक्त किया है।- वर्षा सिह ‘मैं और मेरी ग़ज़लें,’ “ वक्त पढ़ रहा है “ -1992
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (02-10-2019) को "बापू जी का जन्मदिन" (चर्चा अंक- 3476) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आदरणीय डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' जी,
हटाएंबहुत बहुत हार्दिक आभार 🙏
हार्दिक बधाई आदरणीया
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत बहुत धन्यवाद एवं हार्दिक आभार अनिता जी 🙏
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