शुक्रवार, जुलाई 31, 2020

बरसात | शायरी | कुछ ग़ज़लें | कुछ शेर | डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh
वर्षा ऋतु यानी बरसात का मौसम जनमानस पर अपना एक अलग प्रभाव छोड़ता है। रिमझिम गिरता पानी, गरजते-बरसते बादल, रह-रह कर चमक उठती बिजली, भीगी हवा, भीगे अहसास.... उर्दू- हिन्दी शायरी में बरसात के प्रति अलग-अलग अभिव्यक्ति के भाव देखने को मिलते हैं। किसी शायर को बरसात ख़ुशियों की वादी बन कर आनंदित कर जाती तो किसी के लिए ग़मों का पहाड़ बन कर रोने का सबब बन जाती है। प्रिय ब्लॉग पाठकों, आज मैं यहां चर्चा करना चाहूंगी बरसात की कुछ ऐसे ही शायरी की... तो प्रस्तुत हैं कुछ चुनिंदा ग़ज़लें, कुछ चुनिंदा शेर....
   शायर निदा फ़ाज़ली का यह मशहूर शेर हर साहित्य प्रेमी को याद होगा -
बरसात का बादल तो दीवाना है क्या जाने
किस राह से बचना है किस छत को भिगोना है।

शायर सैफ़ुद्दीन सैफ़ की इस ग़ज़ल में बरसात का यह रंग देखें -
हम को तो गर्दिश-ए-हालात पे रोना आया।
रोने वाले तुझे किस बात पे रोना आया।

कितने बेताब थे रिम-झिम में पिएँगे लेकिन
आई बरसात तो बरसात पे रोना आया।

Ghazal Yatra|Barsaat|Shayari

शायर जानां मलिक का यह शेर  भी कुछ कम नहीं -
खुल के रो लूँ तो ये दीवार हटे दूरी की
अब्र बरसे तो ये बरसात से रस्ता निकले।

ख़ातिर ग़ज़नवी के इस के में फ़ासलों का दर्द बरसात के जाने से बढ़ता दिखाई देता है -
अब के भी वो दूर रहे
अब के भी बरसात चली।

'ख़ातिर' ये है बाज़ी-ए-दिल
इस में जीत से मात भली।

नज़ीर अकबराबादी बरसात में भी बहारों को देखते हैं, वे कहते हैं -
हैं इस हवा में क्या-क्या बरसात की बहारें।
सब्जों की लहलहाहट ,बाग़ात की बहारें।

Ghazal Yatra|Barsaat|Shayari

जुदाई का दर्द और उस पर बरसात का मौसम... फ़रहान हनीफ़ वारसी की ग़ज़ल के चंद शेर यहां प्रस्तुत हैं -
इस मौसम तक आई यार
बीती रुत की ग़म सौग़ात।

दिल से तो निकली लेकिन
होंठों पर आ ठहरी बात।

तन्हा सी मेरे कमरे में
भीग रही है ख़ुद बरसात।

छोटी बहर के शे'रों में
कहना मुश्किल पूरी बात।

सुदर्शन फ़ाकिर के ये शेर बेहद ख़ूबसूरत हैं -
कुछ तो दुनिया की इनायात ने दिल तोड़ दिया
और कुछ तल्ख़ी-ए-हालात ने दिल तोड़ दिया

हम तो समझे थे के बरसात में बरसेगी शराब
आई बरसात तो बरसात ने दिल तोड़ दिया।

दिल तो रोता रहे ओर आँख से आँसू न बहे
इश्क़ की ऐसी रिवायात ने दिल तोड़ दिया।

Ghazal Yatra|Barsaat|Shayari


फ़िराक गोरखपुरी कहते हैं -
बस इक शराब-ए-कुहन के करिश्मे हैं साक़ी
नए ज़माने, नई मस्तियाँ, नई बरसात

कवि नीरज जितने अच्छे गीतकार थे उतने ही बेहतरीन ग़ज़लकार भी। जब वे मंचों पर जाते तो उनसे इस शेर को सुनाने की फ़रमाइश ज़रूर की जाती थी -
अबके बारिश में शरारत ये मेरे साथ हुई,
मेरा घर छोड़ के कुल शहर में बरसात हुई।

ज़िंदगी भर तो हुई गुफ़्तुगू ग़ैरों से मगर
आज तक हम से हमारी न मुलाक़ात हुई

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ का यह शेर भी देखें -
आज बरसात हो रही जमकर, जल रहा दिल का यह नगर फिर भी,
है सरे राह कोहे दुश्वारी, गुज़र रही है पर उमर फिर भी।

Ghazal Yatra|Barsaat|Shayari

इश्क़ में डूबी भावनाओं से मिली ख़ुशी और ग़म में बरसात ने साथ दिया तो ज़िन्दगी की खुरदुरी हक़ीक़तों में भी बरसात अभिव्यक्ति का माध्यम बनी। देखें
ओम प्रकाश चतुर्वेदी 'पराग' का यह शेर -
खेत सूखे हैं, चमन खुश्क है, प्यासे सेहरा
और तालाब में बरसात , खुदा खैर करे।

जिसने कंधे पे मेरे चढ़ के छुआ है सूरज
आज दिखला रहा औकात, खुदा खैर करे।

मुझसे जितना भी बना मैंने संवारी दुनिया
अब तो बेकाबू है हालात, खुदा खैर करे।


दोहासम्राट रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’ ने बेहद ख़ूबसूरत ग़ज़लें भी लिखी हैं। उनकी एक छोटी बहर की ग़ज़ल का मतला देखें जिसमें बरसात और पुरवा का ज़िक्र है -
जब आती बरसात सुहानी ।
पुरवा चलती है मस्तानी ।।

Ghazal Yatra|Barsaat|Shayari

शायर ज़िगर मुरादाबादी ने बरसात का अपनी ग़ज़ल में बेहतरीन इस्तेमाल किया है -
आरिज़ से ढलकते हुए शबनम के वो क़तरे
आँखों से झलकता हुआ बरसात का आलम।

वो नज़रों ही नज़रों में सवालात की दुनिया
वो आँखों ही आँखों में जवाबात का आलम।

डॉ.(सुश्री) शरद सिंह का गद्य पर जितना अधिकार है, उतना ही पद्य पर भी। जहां एक ओर उनके उपन्यासों ने पाठकों के बीच ख्याति अर्जित की है, वहीं दूसरी ओर उनके नवगीत और उनकी ग़ज़लें काव्यप्रेमियों को नयी ऊर्जा से भर देती हैं। बरसात पर उनकी एक ग़ज़ल के कुछ शेर प्रस्तुत हैं -

हर साल इक कहानी, बरसात के मौसम में।
छप्पर से  रिसे  पानी, बरसात के मौसम में।

नाले भी  उफ़नते हैं  बादल के  इशारों पे
दुश्मन लगें वो जानी, बरसात के मौसम में।

आती हैं याद बन के, अक्सर "शरद" हमें वो
बातें सभी पुरानी, बरसात के मौसम में।

Ghazal Yatra|Barsaat|Shayari

राहत इंदौरी का अपना अलग ही अंदाज़ है। वे कहते हैं -
हर बूँद तीर बन के उतरती है रूह में
तन्हा मेरी तरह कोई बरसात में रहे।

हर रंग हर मिज़ाज में पाया है आपको
मौसम तमाम आपकी ख़िदमात में रहे।

शाखों से टूट जाएं वो पत्ते नहीं हैं हम
आँधी से कोई कह दे के औक़ात में रहे।


अरुण आदित्य की ग़ज़ल में बरसात का ज़िक्र कुछ यूं हुआ है -
ये तेरा अँधेरा है, वो मेरा अँधेरा
बांटो न यूं ज़ख्मों को जात-पात की तरह।

इस शहर के पत्थर भी होते हैं तर बतर
बरसो तो जरा टूट के बरसात की तरह।

सूरज का रंग लाल और लाल दिखेगा
लिखने लगोगे रात को जब रात की तरह।

विनय कुमार ने बरसात के जरिये हक़ीक़त बयान की है -
बरसात है, हर शख़्स का घर डूब रहा है।
सपने बरस रहे हैं शहर डूब रहा है।

किस सिम्त से निकला था किताबों से पूछिए
पूरब में आफ़ताब मगर डूब रहा है।

सब धूप में डूबे हुए, दिल ओस में मछली
दिल डूब रहा है कि दहर डूब रहा है।

निकलेगा साफ़-सुथरा उधर लाल किले पर
सड़ती हुई जमुना में इधर डूब रहा है।

Ghazal Yatra|Barsaat|Shayari

          ....और अंत में मेरी यानी इस ब्लॉग की लेखिका डॉ. वर्षा सिंह की दो ग़ज़लें जिनके मक़्ते में बरसात की आमद कुछ इस तरह हुई है -

एक -

पत्ता-पत्ता दिन मुरझाया, फूल-फूल मुरझायी रात।
चर्चाओं के दौर चले पर, रही अधूरी उसकी बात।

"मैं" और "हम" के बीच फ़ासला, शर्तों से कब मिट पाया,
प्यार कहां तब शेष रहा जब, जीत-हार की बिछी बिसात।

ऊंचे पद पा लिए सिफ़ारिश, रिश्तेदारी के चलते,
टिकी रही निचली सतहों पर किन्तु विचारों की औक़ात।

कड़वे सच के कौर घुटक कर जैसे-तैसे आए हैं,
शहरों से खाली लौटों को, क्या दे पाएगा देहात।

अक्सर कोई भीगा बाहर, कोई भीतर से भीगा,
"वर्षा" में सब भीगे लेकिन, एक न हो पाई बरसात।

Ghazal Yatra|Barsaat|Shayari


दो -

आंख खुली जब आधी रात।
सोच-फ़िक्र की बिछी बिसात।

अक्सर रह जाती है आधी
तेरे-मेरे प्यार की बात।

आस बंधी रहती है हरदम
कभी तो बदलेंगे हालात।

व्यर्थ हुई उम्मीद वस्ल की
मिली जुदाई की सौगात।

"वर्षा" की रिमझिम के बदले
अश्कों की होती बरसात।

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7 टिप्‍पणियां:

  1. Behtareen. Blog padhkar Barsaat ki alag alag mijaj k darshan ho paya.

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  2. बहुत - बहुत आभार
    आदरणीय डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' जी 🙏💐

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  3. हार्दिक धन्यवाद ओंकार जी

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  4. डा वर्षा जी आपके ब्लॉग पढ़कर बरसात के ऊपर लिखने की तमन्ना होने लगी।

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