रविवार, जुलाई 26, 2020

चांद | ग़ज़ल | डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

प्रिय मित्रों, मेरे ग़ज़ल संग्रह "हम जहां पर हैं" में संग्रहीत एक और ग़ज़ल प्रस्तुत है....
चांद
     - डॉ. वर्षा सिंह

यादों से भी गहरा चांद
पिघले कतरा-कतरा चांद

परदेसी सा आता जाता
नीम गांछ पर ठहरा चांद

प्रियतम का ख़त पूरनमासी
अक्षर -अक्षर उतरा चांद

धार बेतवा की दर्पण-सी
देखी अपना चेहरा चांद

झील नहाए पर्वत सोए
रोशन ज़र्रा- ज़र्रा चांद

हरियाला बन्ना विंध्याचल
माथे सोहे चेहरा चांद

रात के काले लंबे गेसू
किसने बांधा गजरा चांद

फ़ुरकत के बेबस लम्हों में
इश्क़ परिन्दा, पिंजरा चांद

तन्हाई का आलम 'वर्षा'
ग़ज़ल चांदनी मिसरा चांद
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