गुरुवार, जुलाई 09, 2020

ग़ज़ल जब बात करती है | ग़ज़ल संग्रह | डॉ. वर्षा सिंह | समीक्षा | आचरण

ग़ज़ल जब बात करती है (ग़ज़ल संग्रह) - डॉ. वर्षा सिंह


प्रिय ब्लॉग पाठकों, मेरे ग़ज़ल संग्रह "ग़ज़ल जब बात करती है"  की समीक्षा "आचरण" समाचारपत्र  दिनांक 25.06.2020 में प्रकाशित हुई है।
हार्दिक आभार आचरण🙏
हार्दिक आभार डॉ. महेश तिवारी जी 🙏

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पुस्तक समीक्षा

‘‘ग़ज़ल जब बात करती है’’: नए मुहावरे गढ़ता ग़ज़ल संग्रह

समीक्षक - डॉ. महेश तिवारी

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पुस्तक: ग़ज़ल जब बात करती है (ग़ज़ल संग्रह)
कवयत्री: डॉ. वर्षा सिंह
प्रकाशन वर्ष: 2020, प्रथम संस्करण
मूल्य :   200/-
प्रकाशक: शिवना प्रकाशन, बस स्टैंड, सीहोर (म.प्र.)
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‘‘ग़ज़ल जब बात करती है’’ जैसा कि पुस्तक का शीर्षक है, वह अपने आप में बात करने की सार्थकता स्वयं सिद्ध करता है। शब्दों के माध्यम से भावों की प्रबलता सीधे आत्मा में प्रवेश कर जाती है। ग़ज़ल में रूहानियत भी है और रूमानियत भी है। ये ग़ज़लें सामाजिक जीवन मूल्यों को स्पर्श करती है। ये न केवल झकझोर देती हैं, जीवन को स्पंदित भी करती हैं। ग़ज़ल को प्राणवान बनाने की दिशा में डॉ वर्षा सिंह को न केवल ख्याति देता है, प्रतिष्ठापित भी करता है। वर्तमान युग में महान ग़ज़लकार या कहें कि हिन्दी ग़ज़ल की अस्मिता को स्थापित करने वाले दुष्यंत कुमार की विरासत और परंपरा को गतिशील बनाने में अपनी कलम से डॉ वर्षा जो इबारत लिख रही हैं, वह साहित्याकाश में, ग़ज़ल की दुनिया में एक नया मुकाम हासिल कर चुकी हैं।        
ग़ज़लकार परमात्मा तक पहुंचने का मार्ग प्रशस्त करता है। ग़ज़ल में सूफियाना अंदाज और गायकी दुनिया में जो स्वर मिलता है उससे ग़ज़ल और ज्यादा जीवंत हो उठती है। डाॅ वर्षा सिंह की ग़ज़लों में तंज भी है जो चुभते हैं और आंदोलित भी करते हैं। कविता हो या शायरी, किसी ना किसी पीड़ा से जन्म लेती है। फिर चाहे वह प्रेम, प्रकृति या समाज की पीड़ा हो, यह पीड़ा रचनाकार को गहरी संवेदनशीलता प्रदत्त करती है। उनके ये शेर देखें-
चला रहे हैं आरियां, वो जंगलों की  पीठ पर
कटे हैं पेड़ जिस जगह,वहीं थी ज़िन्दगी कभी।
उदास है  किसान, कर्ज़ के तले,  दबा हुआ
दुखों की छांव है वहां, रही जहां ख़ुशी कभी।
डरा हुआ  है  बालपन, डरी  हुई  जवानियां
निडर  समाज  फिर बने, रहे न बेबसी कभी।

डाॅ. वर्षा सिंह पर्यावरण के प्रति चिंता की लकीरें खींचती हैं जिसमें जंगल की बात है, सपनों की बात है, किताबों को जीवन से जोड़ने की बात है।
दुख-सुख की हैं सखी किताबें।
लगती कितनी सगी किताबें।
जीवन की दुर्गम राहों में ,
फूलों वाली गली किताबें।

उनकी यह ग़ज़ल यह साबित कर देती है कि दुख हो या सुख, किताबें हर स्थिति में बौद्धिक ऊर्जा प्रदान करती हैं तथा मनुष्य को तनाव से मुक्ति भी दिलाती हैं। डाॅ. वर्षा की ग़ज़लों में एक ओर जहां करुणा-प्रेम है तो वहीं दूसरी ओर सामाजिक विसंगतियों को भी उजागर किया गया है।

डाॅ. वर्षा सिंह अनवरत लिख रही हैं और वे जो भी लिख रही हैं वह अनुभूत सत्य का उद्घाटन है। अपनी लेखनी की पैनी धार से पाठकों तक पहुंचने का डाॅ. वर्षा सिंह का यह सत्कर्म उन्हें साहित्य जगत में अपने लेखन की सार्थकता सिद्ध कर शिखर तक पहुंचाने से नहीं रोक सकता। मेरा मानना है कि ग़ज़ल संवेदना है, करुणा है और प्रेम के धरातल को स्पर्श करती हुई सामाजिक विडंबना तथा मानव मात्र की पीड़ा को उजागर करने का दुस्साहस है, जो डाॅ. वर्षा सिंह की ग़ज़लों में स्पष्ट देखा जा सकता है।

‘ग़ज़ल जब बात करती है’ अर्थात संवाद करती है तो निश्चित रूप से उठाए गए मसलों को रास्ता मिलता है, सोचने-समझने की दिशा मिलती है। डाॅ. वर्षा यंह की यह ग़ज़ल इसी बात का संदेश देती है कि -
ग़ज़ल जब बात करती है, दिलों के द्वार खुलते हैं।
ग़मों की स्याह  रातों में  खुशी के  दीप जलते हैं।
सुलझते हैं  कई  मसले,  मधुर  संवाद  करने से
भुलाकर दुश्मनी  मिलने के  फिर पैगाम मिलते है।


संग्रह में समूची ग़ज़लों के बारे में यह कहना मुश्किल है कि कौन-सी ग़ज़ल सबसे अच्छी है, यह तय कर पाना कठिन है। सभी ग़ज़लों की श्रेष्ठता स्वयं सिद्ध हो रही है। डाॅ. वर्षा की रचनाशीलता इसी प्रकार निरंतर बनी रहे। जिस तरह नदी अपने उद्गम को पीछे मुड़कर कभी नहीं देखती, इसी तरह वह डाॅ. वर्षा सिंह भी साहित्य की धारा को प्रवाहमान बनाए हुए हैं। उनका यह छठवां ग़ज़ल संग्रह ‘ग़ज़ल जब बात करती है’ एक ऐसे विशिष्ट ग़ज़लों का गुलदस्ता है जो प्रत्येक पाठक वर्ग को लुभाने में सक्षम है। उनसे संवाद करने में सक्षम है। डाॅ. वर्षा सिंह की ग़ज़लों की यह विशेषता है कि वह किसी भाषा विशेष पर केंद्रित होकर नहीं रह जाती हैं। विश्वास करती हैं भावनाओं को, संवेदनाओं को अभिव्यक्ति देने में इसीलिए उनकी ग़ज़लों में हिंदी, उर्दू, स्थानीय बोली के शब्द तथा अंग्रेजी के शब्द भी सहज रूप से मिलते हैं। इन शब्दों से ग़ज़लों का प्रभाव और बढ़ जाता है और प्रत्येक पाठक को यह ग़ज़लें अपने हृदय से निकली हुई प्रतीत होती हैं। उदाहरण देखें-
पैकेजों का  जाल,  ज़िन्दगी उलझी है।
मत पूछो क्या हाल, ज़िन्दगी उलझी है।
आज यहां हैं,कल हम होंगे और कहीं
बदल रहे हैं साल, ज़िन्दगी उलझी है।
छीन लिया सुख-चैन कैरियर ने सारा
क़दम मिलाते ताल, ज़िन्दगी उलझी है।


 डाॅ. वर्षा सिंह का यह ताजा ग़ज़ल संग्रह पाठकों के बीच तेजी से लोकप्रियता हासिल करता जा रहा है। उनकी आकांक्षा उनके शेरों में बड़ी खूबसूरती से प्रकट होती है-
काश, मंज़र  आज  जैसा  उम्र भर  क़ायम रहे।
तुम पढ़ो, जो मैं लिखूं, यह सिलसिला हरदम रहे।
छल-कपट से हो न नाता, स्वार्थ की बातें न हों
धड़कनों में प्यार की,  बजती  सदा सरगम रहे।

डाॅ. वर्षा सिंह अपनी ग़ज़लों के माध्यम से नए मुहावरे गढ़ती हैं। उनकी ग़ज़लों में बिंबो का नयापन है, जो हिंदी ग़ज़ल को और समृद्ध करता है। यूं भी हिंदी ग़ज़ल के क्षेत्र में डाॅ. वर्षा सिंह का नाम एक जाना पहचाना नाम है और उनकी ग़ज़लें विभिन्न विश्वविद्यालयों में शोध संदर्भ में शामिल हो चुकी है उनका यह नया ग़ज़ल संग्रह ‘‘ग़ज़ल जब बात करती है’’ ग़ज़ल प्रेमियों को तो पसंद आएगा ही, साथ ही शोधार्थियों के लिए भी अत्यंत उपयोगी सिद्ध होगा।
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पता-
डॉ महेश तिवारी
98,  रविशंकर वार्ड,
सागर (म प्र)
मोबाईल - 9302910446



6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर समीक्षा।
    बधाई हो वर्षा सिंह जी।

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  2. यहाँ समीक्षक का नाम मिला अच्छा लगा | महेश जी ने गागर में सागर समीक्षा लिखी है | पुनः बधाई और शुभकामनाएं|

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