मंगलवार, मार्च 23, 2021

शहीदों को नमन | ग़ज़ल | शहीद दिवस | 23 मार्च पर विशेष | डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

प्रिय ब्लॉग पाठकों,
      आज शहीद दिवस पर मेरी एक ग़ज़ल .... 🙏
शहीदों को नमन

चल दिये थे वो अकेले, काफ़िला देखा नहीं
देश को देखा था, अपना फ़ायदा देखा नहीं

बांध कर सिर पर कफ़न निकले थे जो बेख़ौफ़ हो
मंज़िलों पर थी नज़र फिर रास्ता देखा नहीं

देश को आज़ाद करने का ज़ुनूं दिल में लिए
हंस के बंदी बन गये थे, कठघरा देखा नहीं

उन शहीदों को नमन है, जो वतन पर मिट गये
ताज कांटों का पहन कर आईना देखा नहीं

राजगुरु, सुखदेव, "वर्षा", भगत सिंह, आज़ाद ने
आंधियों से डर के  कोई आसरा देखा नहीं

 🙏 -  डॉ. वर्षा सिंह

शहीद दिवस
Martyr's Day
23 March

#ग़ज़लवर्षा

23 टिप्‍पणियां:

  1. यह मेरे लिए अत्यंत प्रसन्नता का विषय है आदरणीय, कि आपने मेरी इस ग़ज़ल को चर्चा मंच हेतु चयनित किया है।
    हार्दिक आभार आपका 🙏

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  2. मैम आपको तहेदिल से सुक्रिया कि आपने हमारे शहीदों के लिए लिखा!अक्सर मै देखती कि किसी के पास हमारे शहीदों के लिए वक्त नहीं है और ना ही उनके बारे में जानने की दिलचस्पी है!आपका बहुत बहुत धन्यवाद और आभार 🙏🙏आपकी कविता बहुत खूबसूरत है वैसे भी जिस में हमारे शहीदों की बात हो उसे खूबसूरत तो होना ही है🙏🙏🙏🙏🙏🙏

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    1. प्रिय मनीषा जी,
      आपकी इस सराहना भरी टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार 🙏
      सस्नेह,
      डॉ. वर्षा सिंह

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  3. चल दिये थे वो अकेले, काफ़िला देखा नहीं
    देश को देखा था, अपना फ़ायदा देखा नहीं
    सत्य के धरातल पर खरी बात कही आपने प्रिय वर्षा जी! देश के लिए कुर्बान होने वाले राजगुरु, सुखदेव,भगत सिंह, आज़ाद सहित असंख्य शहीदों के उत्सर्ग में जुनून और जोश जन्मभूमि की आजादी के लिए ही था । उन्होंने अपने आप को समर्पित कर दिया देश हित में। माँ भारती के इन लाडले सपूतों को श्रद्धा सुमन अर्पित करती अत्यंत सुन्दर कृति 🙏🌹🙏

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    1. प्रिय मीना भारद्वाज जी,
      आपकी इस ऊर्जावान टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार 🙏
      सस्नेह,
      डॉ. वर्षा सिंह

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  4. आंधियों से डर के कोई आसरा देखा नहीं । बिल्कुल सच ! आपकी इस ग़ज़ल के लिए आपका वंदन करते हुए मैं यह निवेदन करता हूँ वर्षा जी कि मैंने रामप्रसाद बिस्मिल जी की आत्मकथा को पढ़ा था तो मुझे पता लगा था कि आज आज़ाद मुल्क में रह रहे हिन्दुस्तान के बाशिंदे उन बलिदानियों की गाथाओं को रूमानी रंग में रंगकर देखते हैं; जो कुछ उन्होंने रोज़-ब-रोज़ भुगता, उससे अंजान रहते हुए । सचमुच ही वे उन हिम्मती दियों की तरह थे जिन्हें बुझाना बड़ी-से-बड़ी आंधियों के लिए मुमकिन न हो सका । आज उन्हें किसी ख़ास दिन याद कर लेना रस्मी ही लगता है । काश उनमें भरे जज़्बे का एक ज़र्रा भी हम अपनी शख़्सियत में उतार सकें !

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    1. बहुत सही कहा आपने आदरणीय माथुर जी ..।
      आपकी विस्तृत टिप्पणी से मेरा उत्साहवर्धन हुआ है... हार्दिक आभार 🙏

      सादर,
      डॉ. वर्षा सिंह

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  5. शहीदों के प्रति समर्पित आओकी इस ग़ज़ल के लिए हार्दिक साधुवाद!
    उन शहीदों को नमन है, जो वतन पर मिट गये
    ताज कांटों का पहन कर आईना देखा नहीं।
    --ब्रजेंद्रनाथ

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    1. हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मर्मज्ञ जी 🙏
      सादर,
      डॉ. वर्षा सिंह

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  6. वीरों शहीदों को सत-सत नमन

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    1. प्रिय कामिनी सिन्हा जी,
      बहुत धन्यवाद मेरे ब्लॉग पर आने और अपनी श्रद्धांजलि शहीदों के प्रति अर्पित करने के लिए 🙏


      सस्नेह,
      डॉ. वर्षा सिंह

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  7. उत्तर
    1. हार्दिक धन्यवाद आदरणीय सान्याल जी 🙏

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  8. सच उन वीरों का कितना बखान करदो कम ही होगा ।
    बहुत बहुत सुंदर ग़ज़ल हृदय तक गहरी उतरती अभिव्यक्ति।
    बधाई वर्षा जी।

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    1. आपकी इस उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए हार्दिक धन्यवाद आदरणीया कुसुम कोठारी जी 🙏

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  9. देश के अमर शहीदों पर लिखी आपकी गजल सराहनीय है ,उन वीर शहीदों को शत शत नमन ।

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    1. बहुत शुक्रिया प्रिय जिज्ञासा जी 🙏

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  10. उन शहीदों को नमन है, जो वतन पर मिट गये
    ताज कांटों का पहन कर आईना देखा नहीं
    नमन उन शहीदों को🙏

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  11. अच्छी जानकारी !! आपकी अगली पोस्ट का इंतजार नहीं कर सकता!
    greetings from malaysia
    let's be friend

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