शुक्रवार, मार्च 05, 2021

चलते-चलते | ग़ज़ल | डॉ. वर्षा सिंह | संग्रह - दिल बंजारा

Dr. Varsha Singh
ग़ज़ल

चलते-चलते


         - डॉ. वर्षा सिंह


रंज-ओ-ग़म से नहीं बचा कोई

दर्द-ए-दिल की नहीं दवा कोई


ज़िन्दगी की उदास राहों में

है नहीं अपना आश्ना कोई


बेवजह रूठ कर जो माने ना

ऐसे होता नहीं ख़फ़ा कोई


आपसे दिल्लगी का मक़सद था

आप देते हमें सज़ा कोई


जैसे माज़ी पुकारता हो मेरा

ऐसी मुझको न दे सदा कोई


अब के मौसम में क्या हुआ, या रब!

हो गया फूल फिर जुदा कोई


यूं ही आंखों में आ गए आंसू

अब न उमड़ेगी फिर घटा कोई


उनकी यादों को नींद आ जाए

काश! ऐसी करे दुआ कोई


यूं ही चुपके से मेरे सिरहाने

आ के रख जाए फिर वफ़ा कोई


बुझ रहे हैं च़िराग, बुझ जाएं

अब न दीजे इन्हें हवा कोई


आप तक जा के ख़त्म हो जाए

ऐसा मिल जाए रास्ता कोई


मंज़िल-ए-राहे-इश्क़ में "वर्षा"

चलते-चलते नहीं थका कोई


         --------------


(मेरे ग़ज़ल संग्रह "दिल बंजारा" से)

15 टिप्‍पणियां:

  1. यूँ ही चुपके से मेरे सिरहाने

    आ के रख जाए फिर वफ़ा कोई ।
    वाह , बहुत खूब ।
    आप तक जा के ख़त्म हो जाए

    ऐसा मिल जाए रास्ता कोई ।
    क्या बात ..... बहुत खूबसूरत ग़ज़ल

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    1. आपकी इस सहृदयता भरी टिप्पणी के प्रति आत्मीय आभार आदरणीया 🙏

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  2. रंज-ओ-ग़म से नहीं बचा कोई, दर्द-ए-दिल की नहीं दवा कोई । बड़ी अच्छी ग़ज़ल कही आपने वर्षा जी ।

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    1. बहुत शुक्रिया तहेदिल से आदरणीय जितेन्द्र माथुर जी

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  3. हार्दिक आभार आदरणीय आपकी इस सदाशयता के लिए 🙏

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  4. है शेर लाजवाब .. किस शेर की तारीफ़ करूं समझ नहीं आया..खूबसूरत गज़ल..

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    1. बहुत शुक्रिया प्रिय जिज्ञासा जी 🙏

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  5. बेहद खूबसूरत
    हर शेर लाजवाब

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  6. उत्तर
    1. हार्दिक धन्यवाद आदरणीय शांतनु जी 🙏

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  7. बहुत ही ख़ूबसूरत लिखा है आपने आदरणीय दी।
    सादर

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  8. उनकी यादों को नींद आ जाए

    काश! ऐसी करे दुआ कोई



    यूं ही चुपके से मेरे सिरहाने

    आ के रख जाए फिर वफ़ा कोई

    सुंदर ग़ज़ल....

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