![]() |
Dr.Varsha Singh |
मावस की यह रात
नई रोशनी बिखर रही है आज नई कंदीलों से
फिर उमंग की थाल सजी है मधुर बताशों- खीलों से
किसे चांद की आज प्रतीक्षा, अमावस की यह रात भली
निकल रही है ज्योति नहाकर दीप-किरण की झीलों से
स्वागत में रत हैं फिर यादें चाहत के दरवाज़े पर सुखद कामना के संदेशे आते चलकर मीलों से
आंगन चौक पूर कर गोरी, द्वार सजाकर तोरण से
रंग बिरंगी उजली झालर बांध रही है कीलों से
कहना मुश्किल असली तारे नभ पर हैं या धरती पर
हुआ परेशान मौसम “वर्षा” तर्कों और दलीलों से
ब्लॉग बुलेटिन टीम की और मेरी ओर से आप सब को गोवर्धन पूजा और अन्नकूट की हार्दिक शुभकामनाएं|
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 08/11/2018 की बुलेटिन, " गोवर्धन पूजा और अन्नकूट की हार्दिक शुभकामनाएं “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
शिवम मिश्रा जी , आपको भी सपरिवार शुभकामनाएं
हटाएंमेरी पोस्ट शामिल करने के लिए हार्दिक आभार
बहुत सुंदर कलात्मक अंलकृत कविता।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार कुसुम जी 🙏
हटाएं