शनिवार, अक्तूबर 12, 2019

ग़ज़ल .... शरद पूर्णिमा - डॉ. वर्षा सिंह

Dr Varsha Singh

*शरद पूर्णिमा दिनांक 13.10.2019 पर विशेष*

*ग़ज़ल*
                 *शरद पूर्णिमा*
                                - डॉ. वर्षा सिंह

क्या क़यामत ढा रही, है शरद की पूर्णिमा।
गीत उजले गा रही, है शरद की पूर्णिमा।

भेद करती है नहीं धनवान - निर्धन में ज़रा
पास सबके जा रही, है शरद की पूर्णिमा।

दूध की उजली कटोरी या बताशे की डली
याद मां की ला रही, है शरद की पूर्णिमा।

दस्तकें देने नयी फिर कार्तिक के द्वार पर
बन संवर कर आ रही, हैै शरद की पूर्णिमा।

खोलती किरणें कई गोपन प्रकृति के अनकहे
नभ- धरा पर छा रही, है शरद की पूर्णिमा।

यूं तो पूरे चांद वाली रात लगती है भली
आज बेहद भा रही, हैै शरद की पूर्णिमा।

हो रही "वर्षा" सुधा की, चांदनी के रूप में
मधु कलश छलका रही, है शरद की पूर्णिमा।
               ------------
        आज शरद पूर्णिमा के अवसर पर मेरी इस ग़ज़ल को web magazine युवा प्रवर्तक के अंक दिनांक 13 अक्टूबर 2019 में स्थान मिला है।
युवा प्रवर्तक के प्रति हार्दिक आभार 🙏
मित्रों, यदि आप चाहें तो पत्रिका में इसे इस Link पर भी पढ़ सकते हैं ...
http://yuvapravartak.com/?p=20089

ग़ज़ल ... शरद पूर्णिमा - डॉ. वर्षा सिंह


9 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 13 अक्टूबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. हार्दिक आभार दिग्विजय अग्रवाल जी,
      यह मेरे लिए अत्यंत प्रसन्नता का विषय है।
      🙏

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  2. शुभकामनाएं ले कर आ रही है शरद की पूर्णिमा।

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    1. हार्दिक धन्यवाद

      बहुत सुंदर पंक्ति जोड़ी है आपने... पुनः धन्यवाद 🙏

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  3. रवीन्द्र सिंह यादव जी,
    हार्दिक आभार 🙏

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  4. शरद पूर्णिमा के हर रूप पर लिखी बेहद सुंदर गजल।
    मेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत है 👉👉  लोग बोले है बुरा लगता है

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