Dr. Varsha Singh |
मेरी ग़ज़ल को web magazine युवा प्रवर्तक के अंक दिनांक 14 मई 2019 में स्थान मिला है।
युवा प्रवर्तक के प्रति हार्दिक आभार 🙏
मित्रों, यदि आप चाहें तो पत्रिका में इसे इस Link पर भी पढ़ सकते हैं ...
http://yuvapravartak.com/?p=14724
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ग़ज़ल
वह मेरी छोटी सी मेज़ !
- डॉ. वर्षा सिंह
- डॉ. वर्षा सिंह
कितने राज़ छुपाये रहती, वह मेरी छोटी सी मेज़।
मुझको सखी-सहेली लगती, वह मेरी छोटी सी मेज़।
मुझको सखी-सहेली लगती, वह मेरी छोटी सी मेज़।
उसके भीतर आजू-बाज़ू, चार दराज़ें सिमटी थीं
जिनमें मेरा गोपन रखती, वह मेरी छोटी सी मेज़।
जिनमें मेरा गोपन रखती, वह मेरी छोटी सी मेज़।
वर्षों बीत गए जब मां ने इक दिन मुझको डांटा था
मेरे सारे आंसू गिनती, वह मेरी छोटी सी मेज़।
मेरे सारे आंसू गिनती, वह मेरी छोटी सी मेज़।
पहला प्रेम पत्र जब लिक्खा, लिख- लिख फाड़ा कितनी बार
मेरे असमंजस सब सहती, वह मेरी छोटी सी मेज़।
मेरे असमंजस सब सहती, वह मेरी छोटी सी मेज़।
अब पीछे वाले कमरे में, इक कोने में रहती है
स्मृतियों का हिस्सा बनती, वह मेरी छोटी सी मेज़।
स्मृतियों का हिस्सा बनती, वह मेरी छोटी सी मेज़।
"वर्षा" मोबाइल ने छीना, "मसि-कागद'' पर लेखन को,
कुछ भी नहीं किसी से कहती, वह मेरी छोटी सी मेज़।
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कुछ भी नहीं किसी से कहती, वह मेरी छोटी सी मेज़।
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#ग़ज़लवर्षा
ग़ज़ल - डॉ. वर्षा सिंह # ग़ज़लयात्रा |
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (15-05-2019) को "आसन है अनमोल" (चर्चा अंक- 3335) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह ... बहुत लाजवाब शेर मेज जैसे विषय पर भी ...
जवाब देंहटाएंबधाई ...