शुक्रवार, मई 10, 2019

ग़ज़ल .... त्रासदी है इश्क़ - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

       मेरी ग़ज़ल को web magazine युवा प्रवर्तक के अंक दिनांक 10 मई 2019 में स्थान मिला है।
युवा प्रवर्तक के प्रति हार्दिक आभार 🙏
http://yuvapravartak.com/?p=14569
मित्रों, यदि आप चाहें तो पत्रिका में इसे इस Link पर भी पढ़ सकते हैं ...

ग़ज़ल

त्रासदी है इश्क़
                     - डॉ. वर्षा सिंह

अजनबी शहर है, रात दिन है अजनबी।
चुभ रहा ख़्याल में वो पिन है अजनबी।

लग रही है रोशनी भी ख़ौफ़नाक सी 
अंधकार का सफ़र, कठिन है अजनबी।

जबकि ज़िन्दगी बिता दी इनके वास्ते,
रंग चाहतों का क्यों मलिन है अजनबी।

गूंथ कर गया वो मेरी चोटियों में जो,
आज  लग रहा वही रिबन है अजनबी।

दुख जिसे मिले हरेक मोड़ पर यहां,
सुख भरा हुआ हरेक छिन है अजनबी।

त्रासदी है इश्क़, "वर्षा" क्या कहें किसे
अजनबी वसुंधरा, गगन है अजनबी। 

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#ग़ज़लवर्षा

त्रासदी है इश्क़ - डॉ. वर्षा सिंह # ग़ज़ल यात्रा

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