सोमवार, जून 10, 2019

ग़ज़ल ... कैसा ये इश्क़ है! - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

       मेरी ग़ज़ल को web magazine युवा प्रवर्तक के अंक दिनांक 10 जून 2019 में स्थान मिला है।
युवा प्रवर्तक के प्रति हार्दिक आभार 🙏
मित्रों, यदि आप चाहें तो पत्रिका में इसे इस Link पर भी पढ़ सकते हैं ...
http://yuvapravartak.com/?p=15661

कैसा ये इश्क़ है!
            - डॉ. वर्षा सिंह

आंखें न पढ़ सके तुम, कैसा ये इश्क़ है!
बढ़ते क़दम गये थम, कैसा ये इश्क़ है!

इक आरजू थी दिल में, दिल में ही रह गई
पलकें मेरी हुईं नम, कैसा ये इश्क़ है!

आरोह से पहले ही अवरोह आ गया
पूरी हुई न सरगम, कैसा ये इश्क़ है!

तुम दूर जा रहे थे लब पर हंसी लिए
मैं आज भी हूं गुमसुम, कैसा ये इश्क़ है!

होने को हुई "वर्षा" , बूंदें नहीं गिरीं
आंसू गिरे झमाझम, कैसा ये इश्क़ है!

                  -------------------
#ग़ज़लवर्षा


2 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (12-06-2019) को "इंसानियत का रंग " (चर्चा अंक- 3364) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं
  2. आदरणीय डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'जी,
    मेरी रचना का चयन चर्चा हेतु करने के लिए अत्यंत आभार 🙏

    जवाब देंहटाएं