शनिवार, जून 29, 2019

ग़ज़ल ... नया सबेरा - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

       मेरी ग़ज़ल को web magazine युवा प्रवर्तक के अंक दिनांक 28 जून 2019 में स्थान मिला है।
युवा प्रवर्तक के प्रति हार्दिक आभार 🙏
मित्रों, यदि आप चाहें तो पत्रिका में इसे इस Link पर भी पढ़ सकते हैं ...
http://yuvapravartak.com/?p=16240

नया सबेरा
            - डॉ. वर्षा सिंह

इसीलिये सूरज डूबा है, कल फिर नया सबेरा हो ।
ख़्वाब अधूरा रहे न कोई, तेरा हो या मेरा हो ।

फूल खिले तो बिखरे ख़ुशबू, बिना किसी भी बंधन के,
रहे न दिल में कभी निराशा, उम्मीदों का डेरा हो ।

जहां -जहां भी जाये मनवा, अपनी चाहत को पाये,
इर्दगिर्द चौतरफा हरदम, ख़ुशियों वाला घेरा हो ।

आंसू दूर रहें आंखों से, होंठों पर मुस्कान बसे,
दुख ना आये कभी किसी पर, सिर्फ़ सुखों का फेरा हो ।

कुण्ठा का तम घेर न पाये, मुक्त उजाला रहे सदा,
"वर्षा" रोशन रहे हर इक पल, कोसों दूर अंधेरा हो ।
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#ग़ज़लवर्षा


2 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (01-07-2019) को " हम तुम्हें हाल-ए-दिल सुनाएँगे" (चर्चा अंक- 3383) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. आदरणीय डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'जी,
    हार्दिक आभार !!!

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