शनिवार, मई 04, 2019

ग़ज़ल... ज़िद्दी चाहत - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

       मेरी ग़ज़ल को web magazine युवा प्रवर्तक के अंक दिनांक 04 मई 2019 में स्थान मिला है।
    युवा प्रवर्तक के प्रति हार्दिक आभार 🙏
मित्रों, यदि आप चाहें तो पत्रिका में मेरी ग़ज़ल इस Link पर भी पढ़ सकते हैं ...

http://yuvapravartak.com/?p=14366

ग़ज़ल
          - डॉ. वर्षा सिंह

बेहतर होगा उन गलियों से हम चुपचाप गुज़र जायें।
जिनमें क़दम बढ़ाते ही कुछ ख़्वाब पुराने याद आयें ।

इन्द्रजाल उसका है ऐसा, दिल जिसको दे बैठे हम,
भीड़भाड़ वाली जगहों में  ख़ुद को हम तन्हा पायें।

तिनका-तिनका जोड़ परिन्दे, अपना नीड़ बनाते हैं
अक्सर डूब अहम में अपने, हम मंज़िल को ठुकरायें।

कभी बगावत करता है मन, कभी शरारत करता है,
मन ही मन रो लेते हैं हम, मन ही मन हम मुस्कायें।

अग्नि शिखर को छू लेने की, जिसने ये जिद ठानी है,
इस ज़िद्दी चाहत को "वर्षा" आखिर कैसे बहलायें।
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#ग़ज़लवर्षा

ग़ज़ल... डॉ. वर्षा सिंह @ ग़ज़ल यात्रा


2 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (06-05-2019) को "आग बरसती आसमान से" (चर्चा अंक-3327) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. अत्यंत प्रसन्नता का विषय है आदरणीय... चर्चा मंच में स्थान मिलना बहुत महत्त्वपूर्ण है। हार्दिक आभार 🙏

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