Dr. Varsha Singh |
*ग़ज़ल*
आज उसकी गली से गुज़रते हुए, पांव मेरे ठिठक कर वहीं रुक गये।
जिस जगह उसने "लव यू" कहा था मुझे, अश्क आंखों से मेरी टपकने लगे।
वो अचानक न जाने जुदा क्यों हुआ, आज तक मैं समझ ये न पायी कभी,
आज उसकी गली से गुज़रते हुए, जख़्म दिल के अचानक हुए फिर हरे।
एक सपना जो देखा था मिल कर कभी, वो अधूरा, न पूरा हुआ आज तक,
आज तक फिर न कोई मिला उस तरह, जिसके मिलने से दिल में यूं हलचल मचे।
कोई वादा नहीं, कोई कसमें नहीं, एक अंजान बंधन में हम थे बंधे।
आज उसकी गली से गुज़रते हुए, साथ गुज़रे जो पल, याद फिर आ गये।
मुझसे कहता था अक्सर वो हंस कर यही, तुम न होतीं जो 'वर्षा' तो होता मैं क्या!
अब अकेला मुझे छोड़ कर वो गया, क्या ज़रूरी रही ना मैं उसके लिए ?
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- डॉ. वर्षा सिंह
हार्दिक आभार, यशोदा जी 🙏
जवाब देंहटाएंवाह !बेहतरीन आदरणीया
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद
हटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
हटाएंबहुत खूब। आपको बधाई और शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद
हटाएंकोई वादा नहीं, कोई कसमें नहीं, एक अंजान बंधन में हम थे बंधे।
जवाब देंहटाएंआज उसकी गली से गुज़रते हुए, साथ गुज़रे जो पल, याद फिर आ गये।
वाह!!!
बेहद खूबसूरत... भावपूर्ण ...
बहुत बहुत धन्यवाद सुधा जी 🙏
हटाएंबेहतरीन रचना ,बधाई हो आपको
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ज्योति जी
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