Dr. Varsha Singh |
मेरे प्यार की कहानी है जुदा कहूं मैं कैसे!
चुपचाप भी मगर अब सहती रहूं मैं कैसे!
वो न अजनबी है लेकिन मेरा भी वो नहीं है
क्या दिल में चल रहा है उसके पढ़ूं मैं कैसे!
न है शर्त और न कोई वादा किया है हमने,
दुनिया जो मारे ताने, आखिर सहूं मैं कैसे!
ग़ज़लें कही हैं ढेरों, न सुकूं मिला है दिल को,
मिसरों की डोरियों से सपने बुनूं मैं कैसे !
काली सफेद राहें, जैसे हों इक भुलैया,
अब ज़िन्दगी में "वर्षा" रंग फिर भरूं मैं कैसे !
- डॉ. वर्षा सिंह
Ghazal - Dr. Varsha Singh |
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