सोमवार, जनवरी 20, 2020

ग़ज़ल.... अजब तमाशा देखा मैंने - डॉ. वर्षा सिंह



Dr. Varsha Singh

ग़ज़ल

अजब तमाशा देखा मैंने
       - डॉ. वर्षा सिंह

मैंने अपनी बात कही थी, उसने अपनी समझी बात
तब से वह करता है मेरी, मैं करती हूं उसकी बात

अजब तमाशा देखा मैंने, दुनिया के इस मेले में
जिसके जी में जो आता है करता बहकी- बहकी बात

धोखे से भी मत कह  देना, प्यार-मुहब्बत का किस्सा
वरना दूर तलक जाएगी मुंह से जो भी निकली बात

क़ैद ज़िन्दगी के कुछ लम्हे, एल्बम की तस्वीरों में
याद आएगी कभी किसी दिन, बेशक भूली-बिसरी बात


कभी किसी मौके पर "वर्षा" चुप रह जाना ग़लत नहीं
ख़ुशियों की गर कर न सको तो मत करना तुम ग़म की बात

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4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (21-01-2020) को   "आहत है परिवेश"   (चर्चा अंक - 3587)   पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 

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  2. हार्दिक आभार डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' जी 🙏🌺🙏

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  3. लेकिन अगर हमने चुप्पी साध ली तो वो कहेंगे -

    'ये चुप सी क्या लगी है, अजी ! कुछ तो बोलिए !

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    1. 😃 😃 😃

      गोपेश मोहन जी मेरे ब्लॉग पर स्वागत, वंदन, अभिनंदन है आपका 🙏

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