Dr. Varsha Singh |
कोरोनावायरस को फैलने से रोकने के लिए माननीय प्रधानमंत्री जी के द्वारा खींची गई एक अदृश्य लक्ष्मण रेखा को महसूस करते हुए मैं, आप, हम सभी भारतवासी 21 दिन के लॉकडाउन का पालन करते हुए अपने घर से बाहर नहीं निकल रहे हैं ... तो पढ़िए मेरी यह ग़ज़ल देशबंदी यानी टोटल लॉकडाउन के दौरान...
दौर है ये आज़माइश का
- डॉ. वर्षा सिंह
दौर है ये आज़माइश का, ज़रा धीरज धरो
कुछ दिनों की बात है फिर ख़ूब मनचाहा करो
स्याह पन्ने फाड़ कर उजली कथाएं कुछ लिखो
पृष्ठ जो हैं रिक्त, उनमें रंग जीवन का भरो
ख़ुद के दुख की दास्तानों का न कोई अंत है
भूल अपने ग़म सभी तुम पीर ग़ैरों की हरो
वक़्त है एकांत का, रहना स्वयं की क़ैद में
अब मनुजता को स्वयं के धैर्य से तारो- तरो
याद रखना वक़्त रुकता है न अच्छा ना बुरा
खेल सारा कुछ पलों का है तो आखिर क्यों डरो
मृत्यु की तय है घड़ी और ज़िन्दगी के दिन भी तय
सोच कर अंतिम क्षणों को किसलिए प्रतिपल मरो
शुष्कता ने बोरियत से भर दिया वातावरण
बन के "वर्षा"- बूंद, सूखी इस धरा पर तुम झरो
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मेरी इस ग़ज़ल को web magazine युवा प्रवर्तक के अंक दिनांक 26 मार्च 2020 में स्थान मिला है।
युवा प्रवर्तक के प्रति हार्दिक आभार 🙏
मित्रों, यदि आप चाहें तो पत्रिका में इसे इस Link पर भी पढ़ सकते हैं ...
http://yuvapravartak.com/?p=27215
युवा प्रवर्तक के प्रति हार्दिक आभार 🙏
मित्रों, यदि आप चाहें तो पत्रिका में इसे इस Link पर भी पढ़ सकते हैं ...
http://yuvapravartak.com/?p=27215
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 26 मार्च 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार यशोदा जी 🙏
हटाएंबहुत उम्दा और सामयिक ग़ज़ल।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय शास्त्री जी 🙏
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