शनिवार, मार्च 14, 2020

ग़ज़ल : संदर्भ रंगपंचमी - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh with Dr. (Miss) Sharad Singh


लगा है आज रंग तो, लगा है फिर गुलाल भी ।
हुई  है लाल  चूनरी, हुए  हैं लाल गाल भी ।

गली में, खेत में, वनों में,  उड़ रहा अंबीर है,
हुई है लाल  आज तो ये टेसुओं की डाल भी ।

हुआ है आज कृष्ण मन, तो राधिका ये देह है
गुज़र रहा हरेक पल, खुशी   से है निहाल भी ।

मिटा के सारी दुश्मनी, लगाएं आज हम गले
भुला के हर उलाहने, मिटा दें हर सवाल भी ।

ज़रा सी हों शरारतें , ज़रा सी शोख़ हरकतें
रहे न कोई गमज़दा,  मचे ज़रा धमाल भी ।

हुआ है फागुनी हवा का, इस क़दर असर यहां
मचल उठी है चाहतें,  बदल गई है चाल भी ।

न आंख नम रहे कोई, न ‘‘वर्षा ’’ आंसुओं की हो
खुशी की राग-रागिनी, खुशी  के सुर भी, ताल भी ।

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रंगपंचमी के अवसर पर आज मेरी ताज़ा ग़ज़ल को web पत्रिका युवा प्रवर्तक के अंक दिनांक 14 मार्च 2020 में स्थान मिला है।
युवा प्रवर्तक के प्रति हार्दिक आभार 🙏
मित्रों, यदि आप चाहें तो पत्रिका में इसे इस Link पर भी पढ़ सकते हैं ...
http://yuvapravartak.com/?p=26473



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