शनिवार, अप्रैल 04, 2020

लॉकडाउन के समय में किताबों के महत्व को रेखांकित करती ग़ज़ल - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

       लॉकडाउन के सोशल डिस्टेंसिंग वाले  इस दौर में किताबों की महत्व बढ़ गया है। किताबों की महत्ता के प्रति समर्पित मेरी यह ग़ज़ल प्रस्तुत है....


लगती भले हों पहेली किताबें  ।
बनती हैं हरदम सहेली किताबें।

भले हों पुरानी कितनी भी लेकिन
रहती हमेशा नवेली किताबें।

देती हैं भाषा की झप्पी निराली
अंग्रेजी, हिन्दी, बुंदेली किताबें।

चाहे ये दुनिया अगर रूठ जाये
नहीं रूठती इक अकेली किताबें।

शब्दों की ख़ुशबू से तर-ब-तर सी
महकाती "वर्षा", हथेली किताबें।

       📚 - डॉ. वर्षा सिंह

web magazine युवा प्रवर्तक के अंक दिनांक 04.04.2020 में मेरी यह ग़ज़ल "किताबें" प्रकाशित हुई है।
युवा प्रवर्तक के प्रति हार्दिक आभार 🙏
मित्रों, यदि आप चाहें तो पत्रिका में इसे इस Link पर भी पढ़ सकते हैं ...
http://yuvapravartak.com/?p=27973



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