मंगलवार, अप्रैल 07, 2020

लॉकडाउन संदर्भित ग़ज़ल..... तालाबंदी के आलम में - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

     प्रस्तुत है लॉकडाउन संदर्भित मेरी ताज़ा ग़ज़ल ....

लॉकडाउन संदर्भित ग़ज़ल

तालाबंदी के आलम में
         - डॉ. वर्षा सिंह

कट जाएंगे बेशक ये भी, बेहद मुश्किल वाले दिन।
तालाबंदी के आलम में, लगते भोले-भाले दिन।

ग़ैरज़रूरी आपाधापी, कहीं दुबक कर बैठ गई,
लम्हा-लम्हा कछुए जैसे सरके ढीले-ढाले दिन।

बस्ते एक तरफ रख्खे हैं, ऑनस्क्रीन पढ़ाई है,
कुछ भी कह लो लेकिन ये हैं बच्चों के रखवाले दिन।

वक़्त सुरक्षित दूरी का है, नज़दीकी से ख़तरा है,
दिल को रखना साफ़ हमेशा, ढल जाएंगे काले दिन।

सावधान रहना ही होगा जगज़ाहिर इस आफ़त से,
बन जाएं नासूर कहीं ना बढ़ते-बढ़ते छाले दिन।

यदाकदा घटना घट जाती, नियमों के उल्लंघन की
इंसानी फ़ितरत के आगे मुज़रिम बैठे-ठाले दिन।

ये भी तय है कठिन दौर कुछ सीख नई दे जाता है
भूल न पायेंगे जीवन भर, सुआ सरीखे पाले दिन।

फ़ुर्सत के लम्हात ये सोचो, बाद मिले हैं बचपन के,
याद आते हैं सोते-जगते "वर्षा" देखे-भाले दिन।
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 मेरी यह ग़ज़ल आज web magazine युवा प्रवर्तक के अंक दिनांक 07.04.2020 में  प्रकाशित हुई है।
युवा प्रवर्तक के प्रति हार्दिक आभार 🙏
मित्रों, यदि आप चाहें तो पत्रिका में इसे इस Link पर भी पढ़ सकते हैं ...
http://yuvapravartak.com/?p=28349



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#लॉकडाउन #कोरोना #दिन


6 टिप्‍पणियां:

  1. अरे वाह, अत्यंत आभार पम्मी जी 🙏

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  2. "दिल को रखना साफ हमेशा, ढल जाएंगे काले दिन"... वाह! बहुत उम्दा अल्फ़ाज़! मुबारक आपको और अहसान आपका इस
    खूबसूरत ग़ज़ल का।

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    1. विश्वमोहन जी, हार्दिक आभार आपके प्रति 💐🙏💐

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  3. बहुत धन्यवाद ओंकार जी 🙏

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  4. बहुत सुंदर ! आशा जगाती बेहतरीन गजल

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