शुक्रवार, फ़रवरी 19, 2021

और कब तक | ग़ज़ल | डॉ. वर्षा सिंह | संग्रह - सच तो ये है

Dr. Varsha Singh


और कब तक ...


          - डॉ. वर्षा सिंह


आग से भी खेलना है, राख होने का भी डर 

इस तरह पूरा न होगा, ज़िन्दगी का ये सफ़र 


तोड़ दो वह क़ैद जिसने धूप को बंदी किया

दस्तकें देते रहोगे और कब तक द्वार पर !


फूल नीले, पत्तियां काली, हवा कैसी चली !

कौन जाने लग गई इस बाग़ को किसकी नज़र


टेकना मस्तक नहीं, प्रतिकूलता के सामने 

रोशनी के वास्ते यह दीप-झंझा का समर


हो गए निष्प्राण रिश्ते, गुम हुआ अपनत्व भी

कोबरा से भी विषैला, स्वार्थपरता का ज़हर


खाईयां इतनी खुदी हैं दो दिलों के बीच में

अब नहीं आता मुझे पहचान में मेरा शहर


पड़ सके जिस पर न छाया, रंच भर अवसाद की

ढूंढ कर लायें चलो, कोई नई ताज़ा बहर 


समतलों को, घाटियों को ईर्ष्या होती रहे 

पर्वतों से प्यार "वर्षा" को रहेगा उम्र भर 



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(मेरे ग़ज़ल संग्रह "सच तो ये है" से)

25 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 19 फरवरी 2021 को साझा की गई है.........  "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. प्रिय यशोदा जी,
      "सांध्य दैनिक मुखरित मौन" हेतु आपने मेरी पोस्ट का चयन किया है,इस सुखद सूचना के लिए हार्दिक आभार 🙏
      शुभकामनाओं सहित,
      डॉ. वर्षा सिंह

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  2. 'कोबरा से भी विषैला, स्वार्थपरता का ज़हर' । आह वर्षा जी ! सच ही कहा आपने । पर समाज की रग-रग में समा चुके इस ज़हर को अब कैसे निकाला जाए ? बहरहाल अभिनंदन आपका अपनी एक और अच्छी ग़ज़ल साझा करने के लिए ।

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  3. बहुत बेहतरीन ग़ज़ल।
    बिल्कुल नयी बहर और उम्दा अशआर।

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  4. हो गए निष्प्राण रिश्ते, गुम हुआ अपनत्व भी

    कोबरा से भी विषैला, स्वार्थपरता का ज़हर।

    सच को कहती सुंदर ग़ज़ल ।

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    1. आपके द्वारा मिली सराहना मेरे लिए किसी पारितोषिक से कम नहीं है आदरणीया, हार्दिक धन्यवाद 🙏

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  5. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (२०-०२-२०२१) को 'भोर ने उतारी कुहासे की शाल'(चर्चा अंक- ३९८३) पर भी होगी।

    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    अनीता सैनी

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    1. मेरी ग़ज़ल को चर्चा हेतु चयनित करने हेतु हार्दिक आभार प्रिय अनीता सैनी जी 🙏

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  6. आग से भी खेलना है, राख होने का भी डर

    इस तरह पूरा न होगा, ज़िन्दगी का ये सफ़र

    क्या बात है,बहुत खूब....सादर नमन वर्षा जी

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    1. हार्दिक धन्यवाद प्रिय कामिनी सिन्हा जी 🙏

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  7. 'समतलों को, घाटियों को ईर्ष्या होती रहे

    पर्वतों से प्यार "वर्षा" को रहेगा उम्र भर'
    -उफ्फ़, बहुत खूबसूरत!... चुनौती देती सुंदर पंक्तियाँ! बहुत खूब, डॉ. वर्षा!

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    1. हार्दिक धन्यवाद आदरणीय "हृदयेश" जी 🙏

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  8. उम्दा तो है ही साथ ही हर शेर बेमिसाल है जो एक मिसाल छोड़े जाता है पढ़ने वालों के ज़हन में ।
    बेहतरीन वर्षा जी।
    बधाई सुंदर सृजन के लिए।

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    1. अत्यंत आत्मीय धन्यवाद आदरणीया कुसुम कोठारी जी 🙏

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  9. हर शेर याद रखने लायक। बहुत बढ़िया।

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  10. किस शेर की तारीफ करूँ. हर शेर अपने में परिपूर्ण..

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  11. वाह बहुत खूब शानदार गजल, बधाई हो आपको

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  12. शानदार । बहुत बहुत बधाई ।
    Sahityikmoradabad.blogspot.com

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    1. शुक्रिया तहेदिल से डॉ. मनोज रस्तोगी जी 🙏

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