शुक्रवार, फ़रवरी 05, 2021

नदी | ग़ज़ल | डॉ. वर्षा सिंह | संग्रह - सच तो ये है

Dr. Varsha Singh


नदी


    - डॉ. वर्षा सिंह


रेत -पानी बुनी इक दरी है नदी 

आजकल तो लबालब भरी है नदी 


पतझड़ों की उदासी, हंसी फूल की

मौसमी सिलसिलों से घिरी है नदी 


आग से, बिजलियों से इसे ख़ौफ़ क्या 

प्यार जैसी हमेशा खरी है नदी 


प्यास सबकी अलग, चाह सबकी जुदा 

सबकी अपनी अलग दूसरी है नदी 


लेश भर भी नहीं मद रहा है कभी

बन के झरना शिखर से झरी है नदी


फ़र्क करती नहीं ज़ात में, पांत में 

बांटती है ख़ुशी, इक परी है नदी


बंधनों में बंधी घाट से घाट तक 

मुस्कुराती सदा, बावरी है नदी 


हर सदी पीर बो कर गई देह में 

वक़्त की आरियों से चिरी है नदी 


धूप में सुनहरी, छांह में छरहरी

साथ "वर्षा" रहे तो हरी है नदी 


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(मेरे ग़ज़ल संग्रह "सच तो ये है" से)

20 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. बहुत धन्यवाद आदरणीय सुशील कुमार जोशी जी 🙏

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  2. प्यास सबकी अलग, चाह सबकी जुदा; सबकी अपनी अलग दूसरी है नदी । बहुत ख़ूब वर्षा जी ! बड़ी गहरी बात सहजता से कह दी है आपने ।

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    1. आदरणीय जितेन्द्र माथुर जी,
      आप जैसे मनीषी से प्रशंसा पाना एक बहुत बड़ा सुखद अहसास है।
      हार्दिक धन्यवाद मेरे ब्लॉग में पधारने और अपनी अमूल्य टिप्पणी देने के लिए 🙏
      सादर,
      डॉ. वर्षा सिंह

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  3. हर शेर बहुत ही शानदार रेशमी धागे में पिरोया है अपने वर्षा जी..सुंदर ग़ज़ल..

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    1. हार्दिक धन्यवाद प्रिय जिज्ञासा जी 🙏

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  4. "हर सदी पीर बो कर गई देह में

    वक़्त की आरियों से चिरी है नदी


    धूप में सुनहरी, छांह में छरहरी
    साथ "वर्षा" रहे तो हरी है नदी "
    --
    बेबतरीम ग़ज़ल।

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    1. हार्दिक धन्यवाद आदरणीय शास्त्री जी 🙏

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  5. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (०५-०२-२०२१) को 'स्वागत करो नव बसंत को' (चर्चा अंक- ३९६९) पर भी होगी।

    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    अनीता सैनी

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    1. बहुत-बहुत आभार प्रिय अनीता सैनी जी 🙏

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  6. बंधनों में बंधी घाट से घाट तक
    मुस्कुराती सदा, बावरी है नदी

    हर सदी पीर बो कर गई देह में
    वक़्त की आरियों से चिरी है नदी

    वर्तमान परिदृश्य को रेखांकित करती बेहतरीन ग़ज़ल 🌹🙏🌹

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    1. बहुत धन्यवाद प्रिय डॉ. (सुश्री) शरद सिंह ❤️

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  7. पतझड़ों की उदासी, हंसी फूल की

    मौसमी सिलसिलों से घिरी है नदी


    बहुत खूब,सादर नमन वर्षा जी

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    1. हार्दिक धन्यवाद प्रिय कामिनी सिन्हा जी 🙏

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  8. बहुत सुंदर रचना, वर्षा दी।

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    1. हार्दिक धन्यवाद प्रिय ज्योति देहलीवाल जी 🙏

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  9. रेत -पानी बुनी क दरी है नदी

    आजकल तो लबालब भरी है नदी...वाह नदी के मन की बात यूं कह दी...क्या बात है डा. वर्षा जी..वाह

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    1. हार्दिक धन्यवाद अलकनन्दा सिंह जी 🙏

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  10. सुंदर यथार्थ वाली सार्थक रचना सुंदर उपदेश देते भाव ।
    अप्रतिम।

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    1. आदरणीया, आपकी टिप्पणी हमेशा मुझे नई ऊर्जा देती है। हार्दिक धन्यवाद 🙏

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