सच तो ये है
- डॉ. वर्षा सिंह
रेशमी फूल हवा भी ताज़ा
ख़त मेरे नाम क्यों नहीं आया
झील में अक़्स देखना मुश्किल
इस तरफ हैं शजर, उधर छाया
दौड़ती- भागती हुई दुनिया
इस सड़क को कहीं नहीं जाना
सच तो ये है कि एक ख़ामोशी
कह रही आज शोर की गाथा
धुपधुपाती है मोमबत्ती सी
सांस का देह से यही नाता
उम्र मेरी तमाम भीग गई
चूम कर वो गया मेरा माथा
शीत-"वर्षा" का ये अजब मौसम
बर्फ सी रात, दिन हुआ पारा
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(मेरे ग़ज़ल संग्रह - "सच तो ये है" से)
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद मनोज जी 🙏
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 18-12-2020) को "बेटियाँ -पवन-ऋचाएँ हैं" (चर्चा अंक- 3919) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।
धन्यवाद.
…
"मीना भारद्वाज"
प्रिय मीना जी,
हटाएंमुझे यह जान कर अत्यंत प्रसन्नता हो रही है कि मेरी पोस्ट को आपने चर्चा मंच हैतु चयनित किया है। हार्दिक आभार आपके प्रति 🙏🍁🙏
सस्नेह,
डॉ. वर्षा सिंह
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 17 दिसंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंप्रिय यशोदा जी,
हटाएंहार्दिक आभार आपके प्रति यशोदा जी 🌹🙏🌹
प्रिय यशोदा जी,
हटाएंहार्दिक आभार आपके प्रति यशोदा जी 🌹🙏🌹
सशक्त और सारगर्भित उम्दा ग़ज़ल।
जवाब देंहटाएंवाह!बहुत ही सुंदर सृजन दी।
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत-बहुत आभार अनीता जी 🙏
हटाएंखूबसूरत अहसासों से भरी उम्दा ग़ज़ल..।
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया जिज्ञासा जी 🙏
हटाएंसच तो है
जवाब देंहटाएंउम्दा लेखन
बहुत बहुत धन्यवाद विभा जी 🙏
हटाएंलाजवाब गजल...
जवाब देंहटाएंवाह!!!!
हार्दिक धन्यवाद सुधा जी 🙏
हटाएंबहुत शुक्रिया अनुराधा जी 🙏
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा ग़ज़ल , बेहतरीन बंद है सब वाह!
जवाब देंहटाएंमुग्ध करती सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद सान्याल जी 🙏
हटाएंधुपधुपाती है मोमबत्ती सी
जवाब देंहटाएंसांस का देह से यही नाता
बहुत सुन्दर.....
बहुत शुक्रिया विकास नैनवाल जी 🙏
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