मंगलवार, दिसंबर 22, 2020

ये दुआ कीजिए | ग़ज़ल | डॉ. वर्षा सिंह | संग्रह - सच तो ये है

Dr. Varsha Singh

ये दुआ कीजिए

-  डॉ. वर्षा सिंह


अब हमें चाहिए क़िस्मतें ये नहीं

मौसमों की बुरी रंगतें ये नहीं


कार्बन से भरी है हवा की शिरा

दे सकेगी कभी सेहतें ये नहीं 


रह सके आस्था जिन दरों पर, वहां 

हों नक़ाबों मढ़ी सूरतें ये नहीं 


झेलना ही नियति बन गई है जिन्हें 

ख़्वाब में भी गढ़ी मूरतें ये नहीं 


धर्म का संकुचन जिनके हाथों हुआ 

श्लोक भी ये नहीं, आयतें ये नहीं 


ये दुआ कीजिए पीढ़ियां हो सुखी 

छू सके भी उन्हें दहशतें ये नहीं 


दौर संत्रास का ही रहेगा सदा 

गर सुधारी गई हालतें ये नहीं 


लोग जिनके लिए मर मिटे हैं यहां 

साथ "वर्षा" गईं दौलतें ये नहीं


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18 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छी ग़ज़ल है यह वर्षा जी । आख़िरी से पहले वाले शेर में 'हालतें' के बाद 'है' ग़ैरज़रूरी लग रहा है । ज़रा देख लीजिए ।

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    1. शुक्रिया 🙏
      सही कहा आपने
      Due to Typing mistake है अनावश्यक लिख गया है।
      सुधार कर रही हूं।
      पुनः आभार 🌺🙏🌺

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  2. ये दुआ कीजिए पीढ़ियां हो सुखी

    छू सके भी उन्हें दहशतें ये नहीं


    दौर संत्रास का ही रहेगा सदा

    गर सुधारी गई हालतें ये नहीं..सार्थक संदेश देती सुन्दर ग़ज़ल..

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    1. हार्दिक धन्यवाद प्रिय जिज्ञासा जी 🙏🌷🙏

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  3. उम्मीद है दुआओं का असर भी होगा।

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    1. आमीन !!!

      बहुत शुक्रिया टिप्पणी करने हेतु 🙏

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  4. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" (1987...अब आनेवाले कल की सोचो...) पर गुरुवार 24 दिसंबर 2020 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!




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    1. हार्दिक आभार आदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी 🙏

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय शांतनु सान्याल जी 🙏

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद प्रिय अनीता जी 🙏❤️🙏

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  7. दौर संत्रास का ही रहेगा सदा
    गर सुधारी गई हालतें ये नहीं

    लोग जिनके लिए मर मिटे हैं यहां
    साथ "वर्षा" गईं दौलतें ये नहीं

    वर्तमान हालात को वर्णित करती शानदार ग़ज़ल !!!
    बहुत बेहतरीन !!!

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    1. हार्दिक धन्यवाद प्रिय बहन डॉ. (सुश्री) शरद सिंह 🙏❤️🙏

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