Dr. Varsha Singh |
ये दुआ कीजिए
- डॉ. वर्षा सिंह
अब हमें चाहिए क़िस्मतें ये नहीं
मौसमों की बुरी रंगतें ये नहीं
कार्बन से भरी है हवा की शिरा
दे सकेगी कभी सेहतें ये नहीं
रह सके आस्था जिन दरों पर, वहां
हों नक़ाबों मढ़ी सूरतें ये नहीं
झेलना ही नियति बन गई है जिन्हें
ख़्वाब में भी गढ़ी मूरतें ये नहीं
धर्म का संकुचन जिनके हाथों हुआ
श्लोक भी ये नहीं, आयतें ये नहीं
ये दुआ कीजिए पीढ़ियां हो सुखी
छू सके भी उन्हें दहशतें ये नहीं
दौर संत्रास का ही रहेगा सदा
गर सुधारी गई हालतें ये नहीं
लोग जिनके लिए मर मिटे हैं यहां
साथ "वर्षा" गईं दौलतें ये नहीं
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#ग़ज़ल_संग्रह #drvarshasingh1 #वर्षासिंह #ग़ज़ल #सच_तो_ये_है
बहुत अच्छी ग़ज़ल है यह वर्षा जी । आख़िरी से पहले वाले शेर में 'हालतें' के बाद 'है' ग़ैरज़रूरी लग रहा है । ज़रा देख लीजिए ।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया 🙏
हटाएंसही कहा आपने
Due to Typing mistake है अनावश्यक लिख गया है।
सुधार कर रही हूं।
पुनः आभार 🌺🙏🌺
बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद ज्योति जी 🙏
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जवाब देंहटाएंये दुआ कीजिए पीढ़ियां हो सुखी
छू सके भी उन्हें दहशतें ये नहीं
दौर संत्रास का ही रहेगा सदा
गर सुधारी गई हालतें ये नहीं..सार्थक संदेश देती सुन्दर ग़ज़ल..
हार्दिक धन्यवाद प्रिय जिज्ञासा जी 🙏🌷🙏
हटाएंउम्मीद है दुआओं का असर भी होगा।
जवाब देंहटाएंआमीन !!!
हटाएंबहुत शुक्रिया टिप्पणी करने हेतु 🙏
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" (1987...अब आनेवाले कल की सोचो...) पर गुरुवार 24 दिसंबर 2020 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी 🙏
हटाएंअति सुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय शांतनु सान्याल जी 🙏
हटाएंबहुत सुन्दर ग़जल
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद उर्मिला जी 🙏
हटाएंवाह!बेहतरीन दी 👌
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद प्रिय अनीता जी 🙏❤️🙏
हटाएंदौर संत्रास का ही रहेगा सदा
जवाब देंहटाएंगर सुधारी गई हालतें ये नहीं
लोग जिनके लिए मर मिटे हैं यहां
साथ "वर्षा" गईं दौलतें ये नहीं
वर्तमान हालात को वर्णित करती शानदार ग़ज़ल !!!
बहुत बेहतरीन !!!
हार्दिक धन्यवाद प्रिय बहन डॉ. (सुश्री) शरद सिंह 🙏❤️🙏
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