Dr. Varsha Singh |
कच्ची नींदें, ख़्वाब अधूरे
- डॉ. वर्षा सिंह
तेरा-मेरा एक किस्सा है
दुख से घना-घना रिश्ता है
तेरी आंख में आंसू आए
मेरे दिल में कुछ चुभता है
कच्ची नींदें, ख़्वाब अधूरे
पत्ता-पत्ता जाग रहा है
ख़ामोशी कब चुप रहती है
हमने अक्सर उसे सुना है
सुख के मौसम आते-जाते
दुख का स्थाई डेरा है
'पियू-पियू' रटता रहता है
तन का पिंजरा, मन तोता है
"वर्षा" के आंचल में बूंदें
वक़्त का दरिया ख़ुश्क पड़ा है
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(मेरे ग़ज़ल संग्रह "सच तो ये है" से)
वाह
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद जोशी जी
हटाएं🙏💐🙏
- डॉ. वर्षा सिंह
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (27-12-2020) को "ले के आयेगा नव-वर्ष चैनो-अमन" (चर्चा अंक-3928) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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बहुत बहुत आभार आदरणीय शास्त्री जी
हटाएं🙏💐🙏
- डॉ. वर्षा सिंह