रविवार, जनवरी 17, 2021

रोशनी लाओ ज़रा | ग़ज़ल | डॉ. वर्षा सिंह | संग्रह - सच तो ये है

Dr. Varsha Singh

रोशनी लाओ ज़रा 


                 -डॉ. वर्षा सिंह


धूप इक पल ही सही, लाओ ज़रा 

है अंधेरा,  रोशनी लाओ ज़रा 


आंख और पलकों के रिश्ते की तरह 

उम्र भर की दोस्ती लाओ ज़रा 


ग़म मिले कितने, किसे, इस इश्क़ में

वक़्त की खाता-बही लाओ ज़रा


आंधियां झुककर नमन जिसको करें 

निश्चयों की आरती लाओ ज़रा 


सूखती फसलें, झुलसती चेतना 

लहलहाती ज़िन्दगी लाओ ज़रा 


किस क़दर गुमसुम हुआ बचपन यहां

एक मुट्ठी ही ख़ुशी लाओ ज़रा


बन के "वर्षा" तुम भगीरथ की तरह 

आज धरती पर नदी लाओ ज़रा


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(मेरे ग़ज़ल संग्रह "सच तो ये है" से)

20 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत शुक्रिया प्रिय दिव्या अग्रवाल जी 🙏

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    1. बहुत धन्यवाद आदरणीय सुशील कुमार जोशी जी 🙏

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  3. आदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी,
    आपने मेरी पोस्ट को चर्चा हेतु चयनित किया, इस हेतु मैं आपकी आभारी हूं।
    सादर,
    डॉ. वर्षा सिंह

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  4. हार्दिक धन्यवाद ओंकार जी 🙏

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  5. आंख और पलकों के रिश्ते की तरह
    उम्र भर की दोस्ती लाओ ज़रा
    अत्यंत सुन्दर सृजन ।

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  6. सूखती फसलें, झुलसती चेतना
    लहलहाती ज़िन्दगी लाओ ज़रा

    किस क़दर गुमसुम हुआ बचपन यहां
    एक मुट्ठी ही ख़ुशी लाओ ज़रा

    बहुत सुंदर, प्रेरक ग़ज़ल 🌹🙏🌹

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    1. शुक्रिया प्रिय बहन डॉ. (सुश्री) शरद सिंह ❤️

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  7. बहुत ही सुंदर सृजन आदरणीय दी।
    सादर

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    1. बहुत धन्यवाद प्रिय अनीता सैनी जी 🙏

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  8. बहुत सुंदर सृजन है वर्षा जी,
    हथियार नहीं डालने किसी भी जंग में
    उठाके नये कुछ आयुद्ध लाओ जरा।।
    हौसले को नमन सुंदर भावों को नमन।
    अप्रतिम सृजन।

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    1. आपके उद्गार उत्साहित करने वाले हैं। बहुत धन्यवाद आदरणीय कुसुम. कोठरी जी 🙏

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