गुरुवार, जनवरी 21, 2021

फ़र्क | ग़ज़ल | डॉ. वर्षा सिंह | संग्रह - सच तो ये है

Dr. Varsha Singh


फ़र्क

     -डॉ. वर्षा सिंह


अपने गांव - शहर का पत्थर, भला सभी को लगता है 

चाक हृदय हो जाता है जब कभी कहीं वह बिकता है 


पकने को दोनों पकते हैं, फ़र्क यही बस होता है

नॉनस्टिक में सुख पकते हैं, हांडी में दुख पकता है 


नाम वही चल पाता है जो यहां बिकाऊ होता है

उसे भुलाया जाता है जो स्वाद ज़हर का चखता है 


गंगा घाट निवासी भैया, सागर के दुख क्या जानों !

जग के दर्द छुपाए मन में, सबसे हंसकर मिलता है


तथाकथित चाहत का मलबा ढोना भी है नादानी

"वर्षा के सपनों में लेकिन सावन हरदम पलता है


------------


(मेरे ग़ज़ल संग्रह "सच तो ये है" से)

20 टिप्‍पणियां:

  1. सादर नमस्कार,
    आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 22-01-2021) को "धूप और छाँव में, रिवाज़-रीत बन गये"(चर्चा अंक- 3954) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    धन्यवाद.

    "मीना भारद्वाज"

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय मीना भारद्वाज जी,
      आपकी इस सदाशयता के लिए हृदय से आभार 🙏
      सस्नेहाभिवादन,
      डॉ. वर्षा सिंह

      हटाएं
  2. सुन्दर संदेश देतीं नायाब पन्क्तियाँ..

    जवाब देंहटाएं
  3. पकने को दोनों पकते हैं, फ़र्क यही बस होता है
    नॉनस्टिक में सुख पकते हैं, हांडी में दुख पकता है

    नाम वही चल पाता है जो यहां बिकाऊ होता है
    उसे भुलाया जाता है जो स्वाद ज़हर का चखता है

    बेहतरीन...
    लाजवाब ग़ज़ल 🌹🙏🌹

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत धन्यवाद प्रिय बहन डॉ (सुश्री) शरद सिंह ❤️

      हटाएं
  4. "गंगा घाट निवासी भैया, दुख क्या जाने सागर के !
    जग के दर्द छुपाए मन में, सबसे हंसकर मिलता है"
    --
    बेहतरीन ग़ज़ल।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हार्दिक धन्यवाद आदरणीय शास्त्री जी 🙏

      हटाएं
  5. बहुत सुंदर ग़ज़ल आदरणीया

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हार्दिक धन्यवाद प्रिय अनुराधा जी 🙏

      हटाएं
  6. हो सकता है गंगा घाट का निवासी भी मन से उतना ही बेज़ार और मजबूर हो हंसने के लिए

    जवाब देंहटाएं
  7. कड़वी सच्चाइयां बयां की हैं वर्षा जी इस ग़ज़ल में आपने । इसके शेर तो जैसे नावक के तीर हैं - देखन में छोटे लगें, घाव करें गंभीर ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद जितेन्द्र माथुर जी

      हटाएं
  8. नाम वही चल पाता है जो यहां बिकाऊ होता है
    उसे भुलाया जाता है जो स्वाद ज़हर का चखता है
    हमेशा की तरह बहुत ही लाजवाब गजल
    वाह!!!

    जवाब देंहटाएं