सोमवार, जनवरी 18, 2021

प्यार का दीपदान | ग़ज़ल | डॉ. वर्षा सिंह | संग्रह - सच तो ये है

Dr. Varsha Singh


प्यार का दीपदान


  -डॉ. वर्षा सिंह


आंच दिन की न रात को ठहरी 

मुट्ठियों में बंधी न दोपहरी 


प्यार का दीपदान कर आए 

हो गई और भी नदी गहरी 


फूल की देह में चुभा मौसम 

दर्द से हो गई हवा दुहरी 


क़ब्र में भी न चैन रिश्तों को 

इस क़दर दौर ये हुआ ज़हरी 


वास्ता है तो सिर्फ़ मतलब का 

सारे एहसास हो गए शहरी 


चींखना भी फ़िज़ूल है "वर्षा" 

गांव बहरा, है ये गली बहरी


------------


(मेरे ग़ज़ल संग्रह "सच तो ये है" से)

19 टिप्‍पणियां:

  1. पारम्परिक अल्फाजों के साथ उम्दा अशआर।
    बेहतरीन ग़ज़ल।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत-बहुत आभार आपकी इस उत्साहवर्धक टिप्पणी हेतु आदरणीय शास्त्री जी 🙏

      हटाएं
  2. हर शेर कमाल कर रहा है ... लाजवाब गज़ल ...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय नासवा जी 🙏

      हटाएं
  3. उत्तर
    1. हार्दिक धन्यवाद आदरणीय विश्वमोहन जी 🙏

      हटाएं
  4. सादर नमस्कार ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (19-1-21) को "जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि"(चर्चा अंक-3951) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    कामिनी सिन्हा


    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय कामिनी सिन्हा जी,
      मुझे प्रसन्नता है कि मेरी पोस्ट को आपने चर्चा हेतु चयनित किया है। इस हेतु हार्दिक आभार 🙏
      शुभकामनाओं सहित,
      डॉ. वर्षा सिंह

      हटाएं
  5. वाह ! बेहतरीन शेरों से सजी सुंदर ग़ज़ल..

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हार्दिक धन्यवाद प्रिय जिज्ञासा सिंह 🙏

      हटाएं
  6. सच है गूंगे-बहरे, मतलबियों से पट गया है शहर-गांव

    बहुत सही

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आपको प्रिय कविता रावत जी 🙏

      हटाएं
  7. उत्तर
    1. हार्दिक धन्यवाद आदरणीय जितेन्द्र माथुर जी 🙏

      हटाएं
  8. प्रिय यशोदा अग्रवाल जी,
    मुझे प्रसन्नता है कि मेरी पोस्ट को आपने "पांच लिंकों का आनंद" हेत चयनित किया है। इस हेतु हार्दिक आभार 🙏
    शुभकामनाओं सहित,
    डॉ. वर्षा सिंह

    जवाब देंहटाएं
  9. उत्तर
    1. बहुत शुक्रिया आदरणीय सान्याल जी 🙏

      हटाएं