रविवार, जनवरी 31, 2021

वसंत की तलाश | ग़ज़ल | डॉ. वर्षा सिंह | संग्रह - सच तो ये है

Dr. Varsha Singh

वसंत की तलाश

       

      -डॉ. वर्षा सिंह


पत्तियां झुलस चुकी हैं, फूल सूख जाएगा

ये धूप का शहर मुझे इसीलिए न भाएगा 


आदि कवि ने था रचा श्लोक "मा निषाद" का 

है आज किसमें ताब जो विषाद से निभाएगा 


दर्द में दबा है जो, वो बीज हो के अंकुरित

शब्द और सृजन के बीच फ़ासला मिटाएगा 


जिस वसंत की तलाश में गुज़र गई उमर

आस है बंधी हुई कभी यहां वो आएगा


जो छलक रहा है आज, अश्रु बन के आंख से

शुक्र बन के भोर से, नभ पे झिलमिलाएगा


सुख जो क़ैद में है "वर्षा", देखना वो एक दिन

नीर की तरह स्वयं ही रास्ता बनाएगा


--------------


(मेरे ग़ज़ल संग्रह "सच तो ये है" से)

34 टिप्‍पणियां:

  1. 'जो छलक रहा है आज, अश्रु बन के आंख से

    शुक्र बन के भोर से, नभ पे झिलमिलाएगा'

    लाजवाब गजल।

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 01 फरवरी 2021 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हार्दिक आभार प्रिय यशोदा अग्रवाल जी 🙏

      हटाएं
  3. बहुत ही अच्छी गजल |ब्लॉग आने हेतु आभार

    जवाब देंहटाएं
  4. दर्द में दबा है जो, वो बीज हो के अंकुरित, शब्द और सृजन के बीच फ़ासला मिटाएगा । दिल जीत लिया इस शेर ने तो वर्षा जी । आपने सुख के द्वारा नीर की तरह रास्ता बनाने की बात कही है । बशीर बद्र जी ने ऐसी ही बात दुख के लिए कही है :

    पत्थर के जिगर वालों, ग़म में वो रवानी है
    ख़ुद राह बना लेगा, बहता हुआ पानी है

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आदरणीय जितेन्द्र माथुर जी,
      आपकी इस टिप्पणी ने मेरे लेखन को सार्थकता प्रदान की है।
      हार्दिक आभार स्वीकार करें 🙏
      सादर,
      डॉ. वर्षा सिंह

      हटाएं
  5. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 01 फ़रवरी 2021 को 'अब बसन्त आएगा' (चर्चा अंक 3964) पर भी होगी।--
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव


    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी, मेरी ग़ज़ल को चर्चा हेतु चयनित करने के लिए हृदय तल से आभार 🙏
      सादर,
      डॉ. वर्षा सिंह

      हटाएं
  6. आदि कवि ने था रचा श्लोक "मा निषाद" का
    है आज किसमें ताब जो विषाद से निभाएगा

    दर्द में दबा है जो, वो बीज हो के अंकुरित
    शब्द और सृजन के बीच फ़ासला मिटाएगा

    वाह!
    क्या बात।!
    बहुत सुंदर।

    जवाब देंहटाएं
  7. उत्तर
    1. हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा सक्सेना जी 🙏

      हटाएं
  8. उम्मीद पे दुनिया कायम है ! खूबसूरत अभिव्यक्ति

    जवाब देंहटाएं
  9. "पत्तियां झुलस चुकी हैं, फूल सूख जाएगा

    ये धूप का शहर मुझे इसीलिए न भाएगा



    आदि कवि ने था रचा श्लोक "मा निषाद" का
    है आज किसमें ताब जो विषाद से निभाएगा"
    --
    हमेशा की तरह बेहतरीन ग़ज़ल।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आदरणीय शास्त्री जी,
      मेरा लेखन तब मुझे सार्थक लगता है जब आप जैसे विद्वतजन... श्रेष्ठ कवि-सृजनकर्ता की प्रशंसा प्राप्त होती है।
      हार्दिक आभार आपकी सदाशयतापूर्ण टिप्पणी के लिए 🙏
      सादर,
      डॉ. वर्षा सिंह

      हटाएं
  10. दर्द में दबा है जो, वो बीज हो के अंकुरित

    शब्द और सृजन के बीच फ़ासला मिटाएगा ---------------वाह बहुत ही खूबसूरत शब्द हैं...। बधाई आपको

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हार्दिक धन्यवाद आदरणीय संदीप कुमार शर्मा जी 🙏

      हटाएं
  11. जिस वसंत की तलाश में गुज़र गई उमर

    आस है बंधी हुई कभी यहां वो आएगा



    जो छलक रहा है आज, अश्रु बन के आंख से

    शुक्र बन के भोर से, नभ पे झिलमिलाएगा

    ---बहुत सही

    जवाब देंहटाएं
  12. बहुत ही सुंदर गज़ल दी।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हार्दिक धन्यवाद प्रिय अनीता सैनी जी 🙏

      हटाएं
  13. आपकी हर ग़ज़ल या शेर आशा का संदेश देती है वर्षा जी।
    सच कहा आपने ऊसर दिल की भूमि पर जब भी दर्द के बीज अंकुरण लेते हैं एक कवि या सृजक का जन्म होता है हां यूं ही सृजन होता है ।
    वाह!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आदरणीया कुसुम जी,
      आपकी इस टिप्पणी ने मेरी रचनात्मकता को सार्थकता प्रदान की है। बहुत धन्यवाद आपका 🙏
      सादर,
      डॉ. वर्षा सिंह

      हटाएं
  14. आदि कवि ने था रचा श्लोक "मा निषाद" का
    है आज किसमें ताब जो विषाद से निभाएगा

    दर्द में दबा है जो, वो बीज हो के अंकुरित
    शब्द और सृजन के बीच फ़ासला मिटाएगा

    वाह!!!
    बहुत खूबसूरत ग़ज़ल 🌹🙏🌹

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हार्दिक धन्यवाद ❤️
      प्रिय बहन डॉ. (सुश्री) शरद सिंह

      हटाएं