मंगलवार, जनवरी 19, 2021

मुस्कुराओ ज़रा | ग़ज़ल | डॉ. वर्षा सिंह | संग्रह - सच तो ये है

Dr. Varsha Singh

मुस्कुराओ ज़रा

          -डॉ. वर्षा सिंह


एक लय है ख़ुशी, गुनगुनाओ ज़रा 

मुझको मुझसे कभी तो चुराओ ज़रा 


कौन जाने कहां सांस थम कर कहे -

"अलविदा !" दोस्तो, मुस्कुराओ ज़रा 


रूठने की वज़ह कोई हो या न हो 

कोई अपना जो रूठे मनाओ ज़रा 


मैंने देखा है फूलों को झरते हुए 

आंसुओं के न मोती लुटाओ ज़रा 


लोरियों ने सुलाया मुझे ख़्वाब में 

ख्वाब टूटे न, ऐसे जगाओ ज़रा 


मेरे आंचल में ठहरा है मौसम कोई 

एक मिसरा उसे भी सुनाओ ज़रा 


मेरी सांसों ने चुपके से मुझसे कहा -

'तुम हो "वर्षा", बरस के दिखाओ ज़रा'



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(मेरे ग़ज़ल संग्रह "सच तो ये है" से)

14 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन  में" आज बुधवार 20 जनवरी 2021 को साझा की गई है.........  "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. बहुत- बहुत धन्यवाद प्रिय यशोदा अग्रवाल जी 🙏

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  2. मेरी सांसों ने चुपके से मुझसे कहा -

    'तुम हो "वर्षा", बरस के दिखाओ ज़रा' ख़ूबसूरत ग़ज़ल मुग्ध करती हुई।

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    1. आपकी इस मूल्यवान टिप्पणी के लिए आपके प्रति हार्दिक आभार आदरणीय शांतनु सान्याल जी 🙏

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  3. कितनी ख़ूबसूरत ग़ज़ल है यह ! दाद देने के लिए मुनासिब अल्फ़ाज़ ही नहीं मिल रहे ।

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    1. आदरणीय जितेन्द्र माथुर जी,
      आपने अल्फ़ाज़ न मिलने की बात कह कर कुछ ज़्यादा न कहते भी बहुत कुछ कह दिया है।
      बहुत शुक्रिया आपका 🙏
      सादर,
      डॉ. वर्षा सिंह

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  4. वाह!सभी शेर एक से एक उम्दा।
    बहुत खूबसूरत भाव लिए सुंदर सृजन।

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    1. हार्दिक धन्यवाद आदरणीया कुसुम कोठरी जी 🙏

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