शुक्रवार, जनवरी 22, 2021

बदलाव नहीं | ग़ज़ल | डॉ. वर्षा सिंह | संग्रह - सच तो ये है

Dr. Varsha Singh

बदलाव नहीं

      

               -डॉ. वर्षा सिंह


वर्षों से ज्यों की त्यों चर्या, रत्ती भर बदलाव नहीं 

घर - दफ्तर की भाग दौड़ में व्याकुल मन, बहलाव नहीं 


जीवन की अनजान डगर, क्या सफ़र इसी को कहते हैं !

बोझिल सांसें, थके पांव से चलना है ठहराव नहीं 


दुनिया अलग बसाने वालो, दुनिया का मतलब समझो !

दुनिया ऐसी हो, जिसमें हो भेदभाव, अलगाव नहीं 


वस्तु न बन कर रह जाएं हम, विनिमय के बाज़ारों में

सुलझे हों आयाम सभी, हो तनिक यहां उलझाव नहीं


आपाधापी के मौसम में यही कामना "वर्षा" की 

सिर्फ़ शांति की ही चर्चा हो, युद्ध नहीं, टकराव नहीं


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(मेरे ग़ज़ल संग्रह "सच तो ये है" से)


19 टिप्‍पणियां:

  1. शुक्रिया आदरणीय जोशी जी 🙏

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  2. जीवन चर्या पर उत्तम ग़ज़ल प्रस्तुति।

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    1. हार्दिक धन्यवाद आदरणीय शास्त्री जी 🙏

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  3. कुछ बदले-बदले से छन्द संयोजन के साथ यह ग़ज़ल सिरजी है वर्षा जी आपने । उर्दू और हिंदी दोनों ही के अल्फ़ाज़ काम में लेते हुए एक-एक शेर बड़ी ख़ूबसूरती से घड़ा है आपने ।

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    1. बहुत शुक्रिया आपकी इस समीक्षात्मक टिप्पणी के लिए आदरणीय जितेन्द्र माथुर जी 🙏

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  4. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार(२३-०१-२०२१) को 'टीस'(चर्चा अंक-३९५५ ) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    --
    अनीता सैनी

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    1. बहुत धन्यवाद एवं शुभकामनाएं प्रिय अनीता जी 🙏

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  5. काफ़िया उम्दा लगे
    सारे शेर में सुन्दर भावाभिव्यक्ति

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    1. हार्दिक धन्यवाद आदरणीया विभा रानी जी 🙏

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  6. कितने सुंदर भाव हैं! विश्व कल्याण के।
    सुंदर सार्थक संदेशात्मक सृजन।

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    1. हार्दिक धन्यवाद आदरणीया कुसुम कोठारी जी 🙏

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  7. खूबसूरत अशआरों से सृजित चिंतनपरक सृजन । बहुत खूब वर्षा जी !

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    1. हार्दिक धन्यवाद प्रिय मीना भारद्वाज जी 🙏

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  8. बहुत धन्यवाद प्रिय अभिलाषा जी 🙏

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  9. वस्तु न बन कर रह जाएं हम, विनिमय के बाज़ारों में
    सुलझे हों आयाम सभी, हो तनिक यहां उलझाव नहीं

    वर्तमान बाज़ारवाद पर चोट करती शानदार ग़ज़ल 🌹🙏🌹

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    1. दिल से शुक्रिया प्रिय डॉ. (सुश्री) शरद सिंह ❤️🌹❤️

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  10. सिर्फ़ शांति की ही चर्चा हो, युद्ध नहीं, टकराव नहीं''
    आमीन !

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