बुधवार, जनवरी 27, 2021

फ़िज़ूल है | ग़ज़ल | डॉ. वर्षा सिंह | संग्रह - सच तो ये है

Dr. Varsha Singh

फ़िज़ूल है


     -डॉ. वर्षा सिंह


गुजर गई जो ज़िन्दगी, पुकारना फ़िज़ूल है

खंडहरों के द्वार को बुहारना फ़िज़ूल है 


कहीं धुआं, कहीं है लौ, कहीं पे सिर्फ राख है

बुझी-बुझी कथाओं को संवारना फ़िज़ूल है 


हृदय के द्वार बंद कर स्वयं से हो गए जुदा

मंदिरों में देवता, निहारना फ़िज़ूल है 


तटस्थ हो चुका है मन ऊब कर व्यथाओं से 

नदी की धार पर इसे उतारना फ़िज़ूल है


निरस्त हो गई हैं "वर्षा" मौसमों की अर्जियां 

समय का फेर है इसे नकारना फ़िज़ूल है 


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(मेरे ग़ज़ल संग्रह "सच तो ये है" से)

7 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 28.01.2021 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी
    धन्यवाद

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    1. आदरणीय दिलबागसिंह विर्क जी,
      मुझे प्रसन्नता है कि आपने मेरी इस ग़ज़ल का चयन चर्चा मंच के लिए किया है।
      हार्दिक आभार
      एवं
      अनंत शुभकामनाएं 🙏
      सादर,
      डॉ. वर्षा सिंह

      हटाएं
  2. बहुत धन्यवाद आदरणीय जोशी जी 🙏

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  3. "गुजर गई जो ज़िन्दगी, पुकारना फ़िज़ूल है
    खंडहरों के द्वार को बुहारना फ़िज़ूल है"
    --
    बेहतरीन ग़ज़ल।

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  4. वाह!बेहतरीन आदरणीय दी।
    सादर

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