गुरुवार, जनवरी 28, 2021

अजीब हैं | ग़ज़ल | डॉ. वर्षा सिंह | संग्रह - सच तो ये है

Dr. Varsha Singh


अजीब हैं


      -डॉ. वर्षा सिंह


लगाव और नफ़रतों के सिलसिले अजीब हैं

आदमी की फ़ितरतों के दायरे अजीब हैं


रास्तों के बाद रास्ता, कहां है मंज़िलें !

उम्र भर की चाहतों के फ़लसफ़े अजीब हैं


गिर के लफ्ज़ टूटता नहीं, मज़ीद फैलता

हादसों से जूझने के मायने अजीब हैं 


मुट्ठियों में वक़्त की बंधी हुई है रोशनी

खिलखिलाती ज़िन्दगी के चुटकुले अजीब हैं


न जोश है, न होश है, तथाकथित-सा रोष है

घिसट रहे हैं शक्तिहीन क़ाफ़िले अजीब हैं


तार-तार क़ाफ़िए, रदीफ़ का पता नहीं

कर रहे हैं शायरी मसख़रे अजीब हैं


आंधियां हैं, धूप भी, और "वर्षा" है कभी

मौसमों की रंगतों के पैंतरे अजीब है


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(मेरे ग़ज़ल संग्रह "सच तो ये है" से)

4 टिप्‍पणियां:

  1. रास्तों के बाद रास्ता, कहां है मंज़िलें; उम्र भर की चाहतों के फ़लसफ़े अजीब हैं । इस ग़ज़ल को पढ़कर कोई बोल ही नहीं फूट पा रहा । दाद दूं भी तो कैसे वर्षा जी ?

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    1. आदरणीय जितेन्द्र माथुर जी,
      दाद देने में आपका असमंजस ही मेरे लिए किसी दाद या कहिए प्रशंसा से कम नहीं है... बल्कि कहीं बहुत ज़्यादा है।
      शुक्रिया तहेदिल से... 🙏
      सादर,
      डॉ.वर्षा सिंह

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