बुधवार, जनवरी 06, 2021

कोई छू कर गया | ग़ज़ल | डॉ. वर्षा सिंह | संग्रह - सच तो ये है

Dr. Varsha Singh

कोई छू कर गया

            - डॉ. वर्षा सिंह


काश, खिड़की तो इक ज़रा खुलती

फिर से उम्मीद की हवा चलती


इस क़दर है उदास बाग़ीचा 

फूल महका न अब कली खिलती 


कोई छू कर गया ख़यालों में 

चूनरी देर तक रही ढलती 


आईने में वही नज़र आता

मेरी सूरत मुझे नहीं मिलती


मन कभी क़ैद में नहीं रहता 

लोग कह दें भले इसे ग़लती 


रात भर जागती रही "वर्षा" 

दूर कंदील इक रही जलती


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(मेरे ग़ज़ल संग्रह "सच तो ये है" से)

14 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत लाजवाब शेर हैं ... कमाल की गज़ल ...

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    1. हार्दिक धन्यवाद आदरणीय दिगम्बर नासवा जी 🙏

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  2. सादर नमस्कार,
    आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 08-01-2021) को "आम सा ये आदमी जो अड़ गया." (चर्चा अंक- 3940) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    धन्यवाद.

    "मीना भारद्वाज"

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    उत्तर
    1. बहुत -बहुत आभार प्रिय मीना भारद्वाज जी 🙏

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  3. उत्तर
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय शास्त्री जी 🙏

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  4. आईने में वही नज़र आता
    मेरी सूरत मुझे नहीं मिलती

    मन कभी क़ैद में नहीं रहता
    लोग कह दें भले इसे ग़लती

    शानदार ग़ज़ल...🌹🙏🌹

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    1. बहुत शुक्रिया प्रिय बहन डॉ. (सुश्री) शरद सिंह 🌹❤️🌹

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  5. उत्तर
    1. हार्दिक धन्यवाद प्रिय ज्योति जी 🙏🌹🙏

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