वसंत की तलाश
-डॉ. वर्षा सिंह
पत्तियां झुलस चुकी हैं, फूल सूख जाएगा
ये धूप का शहर मुझे इसीलिए न भाएगा
आदि कवि ने था रचा श्लोक "मा निषाद" का
है आज किसमें ताब जो विषाद से निभाएगा
दर्द में दबा है जो, वो बीज हो के अंकुरित
शब्द और सृजन के बीच फ़ासला मिटाएगा
जिस वसंत की तलाश में गुज़र गई उमर
आस है बंधी हुई कभी यहां वो आएगा
जो छलक रहा है आज, अश्रु बन के आंख से
शुक्र बन के भोर से, नभ पे झिलमिलाएगा
सुख जो क़ैद में है "वर्षा", देखना वो एक दिन
नीर की तरह स्वयं ही रास्ता बनाएगा
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(मेरे ग़ज़ल संग्रह "सच तो ये है" से)
'जो छलक रहा है आज, अश्रु बन के आंख से
जवाब देंहटाएंशुक्र बन के भोर से, नभ पे झिलमिलाएगा'
लाजवाब गजल।
बहुत धन्यवाद यशवन्त माथुर जी 🙏
हटाएंसुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंबहुत धन्यवाद आदरणीय जोशी जी 🙏
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 01 फरवरी 2021 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार प्रिय यशोदा अग्रवाल जी 🙏
हटाएंबहुत ही अच्छी गजल |ब्लॉग आने हेतु आभार
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया तुषार जी 🙏
हटाएंदर्द में दबा है जो, वो बीज हो के अंकुरित, शब्द और सृजन के बीच फ़ासला मिटाएगा । दिल जीत लिया इस शेर ने तो वर्षा जी । आपने सुख के द्वारा नीर की तरह रास्ता बनाने की बात कही है । बशीर बद्र जी ने ऐसी ही बात दुख के लिए कही है :
जवाब देंहटाएंपत्थर के जिगर वालों, ग़म में वो रवानी है
ख़ुद राह बना लेगा, बहता हुआ पानी है
आदरणीय जितेन्द्र माथुर जी,
हटाएंआपकी इस टिप्पणी ने मेरे लेखन को सार्थकता प्रदान की है।
हार्दिक आभार स्वीकार करें 🙏
सादर,
डॉ. वर्षा सिंह
नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 01 फ़रवरी 2021 को 'अब बसन्त आएगा' (चर्चा अंक 3964) पर भी होगी।--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
आदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी, मेरी ग़ज़ल को चर्चा हेतु चयनित करने के लिए हृदय तल से आभार 🙏
हटाएंसादर,
डॉ. वर्षा सिंह
सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आदरणीय 🙏
हटाएंआदि कवि ने था रचा श्लोक "मा निषाद" का
जवाब देंहटाएंहै आज किसमें ताब जो विषाद से निभाएगा
दर्द में दबा है जो, वो बीज हो के अंकुरित
शब्द और सृजन के बीच फ़ासला मिटाएगा
वाह!
क्या बात।!
बहुत सुंदर।
बहुत धन्यवाद सधु चन्द्र जी 🙏
हटाएंसुन्दर!
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा सक्सेना जी 🙏
हटाएंउम्मीद पे दुनिया कायम है ! खूबसूरत अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद गगन शर्मा जी 🙏
हटाएं"पत्तियां झुलस चुकी हैं, फूल सूख जाएगा
जवाब देंहटाएंये धूप का शहर मुझे इसीलिए न भाएगा
आदि कवि ने था रचा श्लोक "मा निषाद" का
है आज किसमें ताब जो विषाद से निभाएगा"
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हमेशा की तरह बेहतरीन ग़ज़ल।
आदरणीय शास्त्री जी,
हटाएंमेरा लेखन तब मुझे सार्थक लगता है जब आप जैसे विद्वतजन... श्रेष्ठ कवि-सृजनकर्ता की प्रशंसा प्राप्त होती है।
हार्दिक आभार आपकी सदाशयतापूर्ण टिप्पणी के लिए 🙏
सादर,
डॉ. वर्षा सिंह
दर्द में दबा है जो, वो बीज हो के अंकुरित
जवाब देंहटाएंशब्द और सृजन के बीच फ़ासला मिटाएगा ---------------वाह बहुत ही खूबसूरत शब्द हैं...। बधाई आपको
हार्दिक धन्यवाद आदरणीय संदीप कुमार शर्मा जी 🙏
हटाएंजिस वसंत की तलाश में गुज़र गई उमर
जवाब देंहटाएंआस है बंधी हुई कभी यहां वो आएगा
जो छलक रहा है आज, अश्रु बन के आंख से
शुक्र बन के भोर से, नभ पे झिलमिलाएगा
---बहुत सही
बहुत-बहुत धन्यवाद कविता रावत जी 🙏
हटाएंबहुत ही सुंदर गज़ल दी।
जवाब देंहटाएंसादर
हार्दिक धन्यवाद प्रिय अनीता सैनी जी 🙏
हटाएंमुग्ध करती रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत धन्यवाद आदरणीय
हटाएंआपकी हर ग़ज़ल या शेर आशा का संदेश देती है वर्षा जी।
जवाब देंहटाएंसच कहा आपने ऊसर दिल की भूमि पर जब भी दर्द के बीज अंकुरण लेते हैं एक कवि या सृजक का जन्म होता है हां यूं ही सृजन होता है ।
वाह!
आदरणीया कुसुम जी,
हटाएंआपकी इस टिप्पणी ने मेरी रचनात्मकता को सार्थकता प्रदान की है। बहुत धन्यवाद आपका 🙏
सादर,
डॉ. वर्षा सिंह
आदि कवि ने था रचा श्लोक "मा निषाद" का
जवाब देंहटाएंहै आज किसमें ताब जो विषाद से निभाएगा
दर्द में दबा है जो, वो बीज हो के अंकुरित
शब्द और सृजन के बीच फ़ासला मिटाएगा
वाह!!!
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल 🌹🙏🌹
हार्दिक धन्यवाद ❤️
हटाएंप्रिय बहन डॉ. (सुश्री) शरद सिंह