सोमवार, दिसंबर 20, 2010

डॉ. वर्षा सिंह को ‘गुरदी देवी सम्मान’

इससे सम्बधित अन्य तस्वीरों के लिए यहां क्लिक करें।

महारानी लक्ष्मीबाई एवं स्व. इंदिरा गांधी के जन्म दिवस की पूर्व संध्या पर भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड झांसी एवं बुन्देली लोक कला संगम संस्थान, झांसी के संयुक्त तत्वावधान में विगत 18 नवम्बर को भेल प्रेक्षागार झांसी में गुरदी देवी सम्मान, का आयोजन किया गया। इस अवसर पर समाज सेवा के लिए आजीवन समर्पित स्व. गुरदी देवी की स्मृति में आरम्भ किया गया यह प्रतिष्ठित ‘गुरदी देवी सम्मान’ हिन्दी ग़ज़ल के क्षेत्र में अपनी विशिष्ट शैली एवं प्रयोगधर्मिता के लिए प्रसिद्ध कवयित्री डॉ. वर्षा सिंह को बुन्देली लोक कला संगम संस्थान, झांसी की ओर से प्रदान किया गया। सम्मान के रूप में डॉ. वर्षा सिंह को पांच हजार रुपए की नगद राशि, प्रशस्तिपत्र एवं स्मृतिचिन्ह प्रदान किया गया।
सुप्रसिद्ध उद्घोषक जैनेन्द्र ने डॉ. वर्षा सिंह की रचनायात्रा पर प्रकाश डालते हुए हिन्दी ग़ज़ल के क्षेत्र में उनके विशिष्ट योगदान की सराहना की तथा इसे काव्य विधा के लिए अति महत्वपूर्ण बताया। झांसी के साहित्यप्रेमी उद्योगपति मुकुन्द मेहरोत्रा की अध्यक्षता में सम्पन्न हुए इस समारोह में प्रख्यात लेखिका डॉ. सुश्री शरद सिंह, प्रसार भारती लखनऊ के उपमहानिदेशक गुलाबचंद, भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड झांसी के अधिशासी निदेशक प्रभात कुमार, हाईकोर्ट लखनऊ के युवा अभिवक्ता विवेक कुमार एवं साहित्यकार पन्नालाल ‘असर’ की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।

मंगलवार, सितंबर 07, 2010

नभ व्यथा का

 - डॉ. वर्षा सिंह

नयन में उमड़ा जलद है।
नभ व्यथा का भी वृहद है।


आंसुओं से तर-बतर है
यह कथानक भी दुखद है।


इस दफा मौसम अजब है
आग मन में तन शरद है।


दोष क्या दें अब तिमिर को
रोशनी को आज मद है।


नींद को कैसे मनाएं
ख्वाब की खोई सनद है।


त्रासदी ‘वर्षा’ कहें क्या?
शत्रु अब तो मेघ खुद हैं।

गुरुवार, सितंबर 02, 2010

तुम मेरे साथ चल के तो देखो

- वर्षा सिंह

तुम मेरे  साथ  चल के तो देखो।
रोशनी में  भी  ढल  के तो देखो।

मायने   ज़िन्दगी   के   बदलेंगे
बन के ‘वर्षा’ पिघल के तो देखो।

---------------------------------------------------