जाने कितना लिख्खा मैंने
जाने कितना बांचा मैंने
आड़ी तिरछी इस दुनिया में
ढूंढा अपना खांचा मैंने
दागरहित जो दिखा हमेशा
वही फरेबी निकला अक्सर
बदनामी जिसके सिर चिपकी
उसको पाया सांचा मैंने
🌺 - डॉ. वर्षा सिंह
जाने कितना लिख्खा मैंने
जाने कितना बांचा मैंने
आड़ी तिरछी इस दुनिया में
ढूंढा अपना खांचा मैंने
दागरहित जो दिखा हमेशा
वही फरेबी निकला अक्सर
बदनामी जिसके सिर चिपकी
उसको पाया सांचा मैंने
🌺 - डॉ. वर्षा सिंह
इक पल तोला, इक पल माशा.
यही तो जीवन की परिभाषा.
बेचैनी में रात कटी, पर
सुबह हुई तो जागी आशा.
दुनिया कितनी सुंदर होती
होती सबकी गर इक भाषा.
वक़्त बदलते देर न लगती
होगी पूरी हर अभिलाषा.
अपनेपन से भीगे तन-मन
दुआ यही करती है "वर्षा".
💟 - डॉ. वर्षा सिंह
तपती धूप में छांह के सपने
जैसे अंजानों में अपने
बचपन को गलबहियां डाले
यादें आतीं किस्सा कहने
लम्बा अरसा बीत गया है
पहने ख़ुशियों वाले गहने
ख़ुश्क गला भी व्याकुल होकर
ठंडा पानी लगा है जपने
दूर अभी है राहत - '' वर्षा"
धरा-गगन सब लगे हैं तपने
🌞 - डॉ. वर्षा सिंह
नया रंग जीवन में भरती क़िताबें 📗
कड़ी धूप में छांह बनती क़िताबें 📙
सफ़ह दर सफ़ह अक्षरों को सजाती,
दुनिया को सतरों से बुनती क़िताबें 📘
अजब रोशनी सी बिखरती हमेशा,
तिलस्मी झरोखों सी खुलती क़िताबें 📖
जब भी सताती हैं यादें पुरानी ,
नयी इक कहानी सी कहती क़िताबें 📕
"वर्षा" क़िताबों से है प्यार जिनको,
दिलों-जां से उनको लुभाती क़िताबें 📒
📚- डॉ. वर्षा सिंह