सोमवार, मार्च 29, 2021

ग़ज़ल | होली की हार्दिक शुभकामनाएं | डॉ. वर्षा सिंह


Dr. Varsha Singh
ग़ज़ल : होली
                                -डॉ. वर्षा सिंह

लगा है आज रंग तो, लगा है फिर गुलाल भी ।
हुई  है लाल  चूनरी,  हुए  हैं लाल गाल भी ।

गली में, खेत में, वनों में,  उड़ रहा अंबीर  है,
हुई है लाल  आज तो ये टेसुओं की डाल भी ।

हुआ है आज कृष्ण मन, तो राधिका ये देह है
गुज़र रहा हरेक पल, खुशी   से है निहाल भी ।

मिटा के सारी दुश्मनी, लगाएं आज हम गले
भुला के हर उलाहने, मिटा दें हर सवाल भी ।

ज़रा सी हों शरारतें , ज़रा सी शोख़ हरकतें
रहे न कोई गमज़दा,  मचे  ज़रा  धमाल भी ।

हुआ है चैतिया हवा का, इस क़दर असर यहां
मचल उठी है चाहतें,  बदल गई है चाल भी ।

न आंख नम रहे कोई, न ‘‘वर्षा ’’ आंसुओं की हो
खुशी की राग-रागिनी, खुशी  के सुर भी, ताल भी ।

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गुरुवार, मार्च 25, 2021

फाग गाता है "ईसुरी" जंगल | ग़ज़ल | डॉ. वर्षा सिंह


Dr. Varsha Singh

     फाग गाता है "ईसुरी" जंगल
               - डॉ. वर्षा सिंह

है दरख़्तों  की शायरी जंगल
धूप - छाया की डायरी जंगल

बस्तियों से निकल के तो देखो
ज़िन्दगी की है ताज़गी जंगल

गूंजती  हैं  ये वादियां जिससे
पर्वतों  की  है  बांसुरी  जंगल

कर रहा  है अनेक  कल्पों से
सृष्टिकर्ता की आरती जंगल

जीव हो या कि पौध हो कोई
हंस के करता है दोस्ती जंगल

याद  करता  है  गर्व से अक्सर
''राम-सीता'' की जीवनी जंगल 

जब  बहारें "रजऊ"-सी सजती हैं
फाग  गाता है  *"ईसुरी" जंगल

दिल से  पूछो  ज़रा  परिंदों  के
खुद फ़रिश्ता है, ख़ुद परी जंगल

नाम  ‘वर्षा’  बदल भी जाए तो
यूं  न  बदलेगा ये  कभी जंगल

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* [ भारतेन्दु युग के लोककवि ईसुरी (1831-1909 ई.) आज भी बुंदेलखंड के सर्वाधिक लोकप्रिय कवि हैं। ईसुरी की रचनाओं में ग्राम्य संस्कृति एवं सौंदर्य का वास्तविक चित्रण मिलता है। ग्राम्य संस्कृति का पूरा इतिहास केवल ईसुरी की फागों में मिलता है। उनकी फागों में प्रेम, श्रृंगार, करुणा, सहानुभूति, हृदय की कसक एवं मार्मिक अनुभूतियों का सजीव चित्रण है। उनकी ख्‍याति फाग के रूप में लिखी गई उन रचनाओं के लिए विशेष रूप से है, जो काल्‍पनिक प्रेमिका रजऊ को संबोधित करके लिखी गई हैं। ]

मंगलवार, मार्च 23, 2021

शहीदों को नमन | ग़ज़ल | शहीद दिवस | 23 मार्च पर विशेष | डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

प्रिय ब्लॉग पाठकों,
      आज शहीद दिवस पर मेरी एक ग़ज़ल .... 🙏
शहीदों को नमन

चल दिये थे वो अकेले, काफ़िला देखा नहीं
देश को देखा था, अपना फ़ायदा देखा नहीं

बांध कर सिर पर कफ़न निकले थे जो बेख़ौफ़ हो
मंज़िलों पर थी नज़र फिर रास्ता देखा नहीं

देश को आज़ाद करने का ज़ुनूं दिल में लिए
हंस के बंदी बन गये थे, कठघरा देखा नहीं

उन शहीदों को नमन है, जो वतन पर मिट गये
ताज कांटों का पहन कर आईना देखा नहीं

राजगुरु, सुखदेव, "वर्षा", भगत सिंह, आज़ाद ने
आंधियों से डर के  कोई आसरा देखा नहीं

 🙏 -  डॉ. वर्षा सिंह

शहीद दिवस
Martyr's Day
23 March

#ग़ज़लवर्षा

गुरुवार, मार्च 18, 2021

औरत | महिलाओं को समर्पित | ग़ज़ल | डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

ग़ज़ल


औरत

- डॉ. वर्षा सिंह

ख़ूबसूरत सा ख़्वाब है औरत

ज़ुल्मतों का जवाब है औरत


इसको पढ़ना ज़रा आहिस्ता से 

प्यार की इक किताब है औरत


इस जहां के हज़ार कांटों में

इक महकता गुलाब है औरत


इसमें दुर्गा, इसी में मीरा भी

आधी दुनिया की आब है औरत


जोड़, बाकी, बटा, गुणा "वर्षा"

ज़िन्दगी का हिसाब है औरत



रविवार, मार्च 07, 2021

औरतें | 08 मार्च अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष | ग़ज़ल | डॉ. वर्षा सिंह

ग़ज़ल
औरतें
-डॉ. वर्षा सिंह

सागर की लहर, झील का पानी हैं औरतें।

बहती  हुई  नदी  की   रवानी हैं औरतें।

दुनिया की हर मिसाल में शामिल हैं आज वो
‘लैला’ की, ‘हीर’ की जो कहानी  हैं औरतें।

उनका  लिखित स्वरूप  महाकाव्य की तरह
वेदों की ऋचाओं-सी  ज़ुबानी  हैं  औरतें।

मिलती हैं  जब कभी  वो  सहेली के रूप में
यादों  की  वादियों-सी  सुहानी  हैं औरतें।

‘मीरा’  बनी कभी,  तो ‘कमाली’  बनी कभी
‘वर्षा’  कहा  सभी  ने -‘सयानी हैं औरतें’।
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शुक्रवार, मार्च 05, 2021

चलते-चलते | ग़ज़ल | डॉ. वर्षा सिंह | संग्रह - दिल बंजारा

Dr. Varsha Singh
ग़ज़ल

चलते-चलते


         - डॉ. वर्षा सिंह


रंज-ओ-ग़म से नहीं बचा कोई

दर्द-ए-दिल की नहीं दवा कोई


ज़िन्दगी की उदास राहों में

है नहीं अपना आश्ना कोई


बेवजह रूठ कर जो माने ना

ऐसे होता नहीं ख़फ़ा कोई


आपसे दिल्लगी का मक़सद था

आप देते हमें सज़ा कोई


जैसे माज़ी पुकारता हो मेरा

ऐसी मुझको न दे सदा कोई


अब के मौसम में क्या हुआ, या रब!

हो गया फूल फिर जुदा कोई


यूं ही आंखों में आ गए आंसू

अब न उमड़ेगी फिर घटा कोई


उनकी यादों को नींद आ जाए

काश! ऐसी करे दुआ कोई


यूं ही चुपके से मेरे सिरहाने

आ के रख जाए फिर वफ़ा कोई


बुझ रहे हैं च़िराग, बुझ जाएं

अब न दीजे इन्हें हवा कोई


आप तक जा के ख़त्म हो जाए

ऐसा मिल जाए रास्ता कोई


मंज़िल-ए-राहे-इश्क़ में "वर्षा"

चलते-चलते नहीं थका कोई


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(मेरे ग़ज़ल संग्रह "दिल बंजारा" से)

गुरुवार, मार्च 04, 2021

नाम तुम्हारा | ग़ज़ल | डॉ. वर्षा सिंह | संग्रह - सच तो ये है

Dr. Varsha Singh


नाम तुम्हारा 


   - डॉ. वर्षा सिंह


सुनते हैं सदी पहले कुछ और नज़ारा था

इस रेत के दरिया में पानी था, शिकारा था


रिश्तों से, रिवाज़ों से, बेख़ौफ़ हथेली पर

जो नाम लिखा मैंने, वो नाम तुम्हारा था


मुद्दत से मुझे कोई, बेफ़िक्र न मिल पाया 

हर शख़्स की आंखों में चिंता का पिटारा था 


दंगों ने, फ़सादों ने बस्ती ही जला डाली

जिस ओर नज़र डाली, उस ओर शरारा था

 

हैरान न अब होना, आंधी जो चली आई 

ख़ामोश उदासी ने हलचल को पुकारा था


ज़िद पार उतरने की, हो पाई नहीं पूरी

डूबी थी जहां किश्ती, कुछ दूर किनारा था


थक-हार के लोगों ने, चर्चा ही बदल डाली 

समझा न कोई कुछ भी, क्या ख़ूब इशारा था


जिस रात की आंखों में, मैं झांक नहीं पाई 

उस रात की आंखों का, हर ख़्वाब सितारा था 


मर-मर के बिताई है "वर्षा" ने उमर सारी 

कहने को हर एक लम्हा, जी-जी के गुज़ारा था 


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(मेरे ग़ज़ल संग्रह "सच तो ये है" से)