मंगलवार, सितंबर 29, 2020

दिल से दिल की शायरी | विश्व हृदय दिवस पर विशेष | डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

      प्रिय ब्लॉग पाठकों, आज विश्व हृदय दिवस है 
❤ यानी दिल का दिन 😊
❤ Happy World Heart Day ❤
     दरअसल दुनिया भर के तमाम लोगों को हृदयरोगों के प्रति जागरूक करने के उद्देश्य से वर्ष 2000 में 'विश्व हृदय दिवस' मनाने की शुरुआत की गई। पहले यह सितम्बर के अंतिम रविवार को मनाया जाता रहा था, लेकिन 2014 से इसे प्रति वर्ष 29 सितम्बर के दिन मनाया जाने लगा। 'विश्व स्वास्थ्य संगठन' (डब्ल्यूएचओ) की भागीदारी से स्वयंसेवी संगठन 'वर्ल्ड हार्ट फेडरेशन' हर साल 'विश्व हृदय दिवस' मनाता है।
इस वर्ष विश्व हृदय दिवस यानी World Heart Day की थीम है - 
Use heart to beat cardiovascular disease.
अर्थात् हृदय रोग को हराने के लिए दिल का उपयोग करें।
 यूं तो दिल के उपयोग की बात यहां भौतिक रूप से हृदय के स्वास्थ्य को ध्यान में रख कर की गई है लेकिन जब बात 'दिल' और 'दिल के रोग' की हो तो  .....और शायरों से बेहतर दिल के हालात से भला कौन वाकिफ़ होगा 😊

     जी हां, दुनिया में शायद ही कोई ऐसा शायर होगा जिसने दिल को ले कर कोई शायरी नहीं की होगी। यूं भी शायरी का वास्ता दिमाग़ से कम दिल से ही ज़्यादा होता है।
   तो चलिए इस ग़ज़लयात्रा में आज प्रस्तुत कर रही हूं 'दिल' से वाबस्ता कुछ चुनिंदा शेर और ग़ज़लें.....

दिल न होता तो कोई चीज़ न होती दुनिया 
दिल भी क्या चीज़ है दुनिया पे मिटा जाता है 
      ❤ - शफ़ी मंसूर

एक ही सी तन्हाई एक ही सा सन्नाटा 
दश्त क्या है दिल क्या है क्या तुझे बताऊँ मैं
   ❤ - जाफ़र शिराज़ी

दिल-ए-नादां तुझे हुआ क्या है 
आख़िर इस दर्द की दवा क्या है 
  ❤ - मिर्ज़ा ग़ालिब

दिल भी पागल है कि उस शख़्स से वाबस्ता है 
जो किसी और का होने दे न अपना रक्खे 
   ❤ - अहमद फ़राज़

नुकताचीं है, ग़मे-दिल उसको सुनाये न बने
क्या बने बात, जहां बात बनाये न बने

मैं बुलाता तो हूं उसको, मगर ऐ जज़बा-ए-दिल
उस पे बन जाए कुछ ऐसी, कि बिन आये न बने
  ❤ - मिर्ज़ा ग़ालिब

हर धड़कते पत्थर को लोग दिल समझते हैं 
उम्रें बीत जाती हैं दिल को दिल बनाने में 
  ❤ - बशीर बद्र

मोहब्बत रंग दे जाती है जब दिल दिल से मिलता है 
मगर मुश्किल तो ये है दिल बड़ी मुश्किल से मिलता है 
 ❤ - जलील मानिकपूरी

बुत-ख़ाना तोड़ डालिए मस्जिद को ढाइए 
दिल को न तोड़िए ये ख़ुदा का मक़ाम है 
 ❤ - हैदर अली आतिश

कह दो इन हसरतों से कहीं और जा बसें 
इतनी जगह कहाँ है दिल-ए-दाग़-दार में 
  ❤ - बहादुर शाह ज़फ़र

दिल दे तो इस मिज़ाज का परवरदिगार दे 
जो रंज की घड़ी भी ख़ुशी से गुज़ार दे 
   ❤ - दाग़ देहलवी

आप दौलत के तराज़ू में दिलों को तौलें 
हम मोहब्बत से मोहब्बत का सिला देते हैं 
    ❤ - साहिर लुधियानवी

दिल चीज़ क्या है आप मिरी जान लीजिए 
बस एक बार मेरा कहा मान लीजिए 
  ❤ - शहरयार

शाम भी थी धुआँ धुआँ हुस्न भी था उदास उदास 
दिल को कई कहानियाँ याद सी आ के रह गईं 
 ❤ - फ़िराक़ गोरखपुरी

दर्द हो दिल में तो दवा कीजे 
और जो दिल ही न हो तो क्या कीजे 
 ❤ - मंज़र लखनवी

दिल पे आए हुए इल्ज़ाम से पहचानते हैं 
लोग अब मुझ को तिरे नाम से पहचानते हैं 
 ❤ - क़तील शिफ़ाई

कभी दिल में आरज़ू-सा, कभी मुँह में बद्दुआ-सा
मुझे जिस तरह भी चाहा, मैं उसी तरह रहा हूँ

मेरे दिल पे हाथ रक्खो, मेरी बेबसी को समझो
मैं इधर से बन रहा हूँ, मैं इधर से ढह रहा हूँ
    ❤ - दुष्यंत कुमार

बग़ावत के कमल खिलते हैं दिल की सूखी दरिया में।
मैं जब भी देखता हूँ आँख बच्चों की पनीली है।
       ❤ - अदम गोंडवी

दिल भी इक ज़िद पे अड़ा है किसी बच्चे की तरह
या तो सब कुछ ही इसे चाहिए या कुछ भी नहीं
     ❤ - राजेश रेड्डी

ज़ज़्बात के बिन, ग़ज़ल हो गयी क्या
बिना दिल के पिघले, ग़ज़ल हो गयी क्या

नहीं कोई मक़सद, नहीं सिलसिला है
बिना बात के ही, ग़ज़ल हो गयी क्या

नहीं कोई कासिद, नहीं कोई चिठिया
बिना कुछ लिखे ही, ग़ज़ल हो गयी क्या

जरूरत के पाबन्द हैं, लोग अब तो
बिना दिल मिले ही, ग़ज़ल हो गयी क्या
 ❤ -  डॉ. रूपचंद्र शास्त्री मयंक

खोल दें हम अपने दिल की डायरी।
फिर करें कुछ कच्ची-पक्की शायरी।

बोझ लें हम क्यूं भला, हर बात का
ज़िंदगी झिलमिल करें ज्यों फुलझरी।

आलमारी  में  रखे  कुछ  शब्द  ढूंढे
फिर  करें  बातों  में  कुछ  कारीगरी।

बोतलों  के  जिन्न-सी  हर  दुश्मनी
भूल सब आओ करें कुछ मसखरी।

कह रही सब से 'शरद', तुम भी सुनो
दिल की ख़ातिर भी रखो कुछ बेहतरी।
   ❤ - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह

मेरी यादों में आके क्या करोगे
आस दिल में जगा के क्या करोगे

ज़माने का बड़ा छोटा सा दिल है
सबसे मिल के मिला के क्या करोगे

अगर राहों में ही वीरानियाँ हों
इतनी बातें बना के क्या करोगे

नफरतें और बढ़ जाएंगी दिल में
ऐसी बातों में आ के क्या करोगे

जो दिल नाआशना ही हो चुके हों
फ़क़त रिश्ता बना के क्या करोगे
  ❤ - शाहनवाज़ 'साहिल'

दर्दे दिल की लौ ने रौशन कर दिया सारा जहां  
इक अंधेरे में चमक उट्ठी कि जैसे बिजलियां
   ❤ - देवी नागरानी

ए मेरे दिल तुझे हुआ क्या है 
बस सुबह से बुझा बुझा सा है ।

क्या किसी ने तुझे कहा कुछ है 
पर किसी ने तुझे कहा क्या है । 
   ❤ - सुधेश

हवा पानी नही मिलता वो पत्ते सूख जाते हैं
लचीले हो नही सकते शजर वो टूट जाते हैं

मुझे आता नही यारों ज़माने का चलन कुछ भी
वो मेरी बात पे गुस्से में अक्सर रूठ जाते हैं

गुज़रती उम्र का होने लगा है कुछ असर मुझपे
जो अच्छे शेर होते हैं वो अक्सर छूट जाते हैं

अतिथि देव भव अच्छा बहुत सिद्धांत है लेकिन
अतिथि बन के आए जो मुसाफिर लूट जाते हैं

न खोलो तुम पुरानी याद के ताबूत को फिर से
कई लम्हे निकल के पेड़ पे फिर झूल जाते हैं

हमारे दिल के दरवाजे पे तुम दस्तक नही देना
पुराने घाव हल्की चोट से ही फूट जाते हैं
    ❤ - दिगंबर नासवा

दिवाली थी तो चरागों का एहतराम किया,
दिल अपने जलाए और तेरे नाम किया।
   ❤ - नीतिश तिवारी

फेसबुक  से  यूँ   हटाना  बस में था ।
अब जरा  दिल  से हटाकर  देखिये ।।

आप मेरे  इश्क़  के  काबिल तो  हैं ।
हो सके तो  दिल  मिलाकर देखिये ।।

दीन  हो  जाए   न  ये  बर्बाद  अब ।
मत  हमें  नज़रें  झुकाकर  देखिये ।।

कत्ल   होने   का  इरादा  था  मेरा ।
बेवजह  मत  आजमाकर  देखिये ।।

धड़कने   देंगी  गवाही  फ़िक्र   की ।
खत मेरा दिल से लगाकर  देखिये ।।
     ❤ - नवीन मणि त्रिपाठी

चाहता तो वह मुझे दिल में भी रख सकता था
मुनासिब हरेक को चार दीवारियाँ नहीं होती

कुछ तो होता होगा असर दुआओं का भी
सिर्फ दवाओं से ठीक बीमारियाँ नहीं होती
   ❤ - कविता रावत
   
अपना मक़ाम दिल के तेरे बीचो बीच था
मुश्क़िल हमें था जाना वहाँ तक मगर गए

हो उस निगाहे लुत्फ़ की तारीफ़ किस तरह
जिसकी बिनाहे शौक नज़ारे सँवर गए

जाँबर सभी थे जान बचाकर लिए निकल
हम ही थे इक जो तेरी अदाओं पे मर गए

तो फिर नहीं बुलाएँगे ता’उम्र आपको
ग़ाफ़िल जी आप दिल से हमारे अगर गए
  ❤ -  चन्द्र भूषण मिश्र ग़ाफ़िल


तुझे चाहना, तुझे सोचना अच्छा  लगता है, 
मात्र कल्पनाओं में मिलना अच्छा लगता है!! 

बंद आँख से स्वप्न मिलन के प्रायः हैं देखे,
खुली पलक से तेरा सपना अच्छा  लगता है!! 

देखा नहीं तुझे है अब तक फिर भी जाने क्यों, 
तेरा नाम जुबां पे रखना अच्छा लगता है!!

अपने गीतों में, कविता में क्यों न तुझे ढालूँ, 
ग़ज़ल बनाकर दिल पर लिखना अच्छा लगता है!!

हर धड़कन में तू शामिल है, प्रेम रतन धन तू,  
"तू है मात्र हमारी" कहना, अच्छा लगता है..!! 

तेरे साथ बैठ कर सागर तट पर रातों में, 
उठती गिरती लहरें गिनना अच्छा लगता है..!! 

कुछ अपने कुछ तेरे मन की बातें कानों में,
धीरे-धीरे कहना सुनना अच्छा लगता है..!!
   ❤ - विद्या भूषण मिश्र " भूषण"


और अंत में प्रस्तुत है मेरी यानी इस ब्लॉग लेखिका डॉ. वर्षा सिंह की एक ग़ज़ल -

चले थे साथ, अब राहें अलग अपनी जुदा क्यों हैं ।
नहीं दिल की कोई ग़लती तो पाता ये सज़ा क्यों है।

मुहब्बत के  जुनू वाली  ये  बातें  तो  पुरानी  हैं
ये तूफां-सा मगर सीने में आखि़र अब उठा क्यों हैं।

कोई  आवाज़ देता है  किसी को़,  चौंकती हूं  मैं
पुकारा है  मुझे उसने  ये  धोखा-सा हुआ क्यों है।

न जाने कब से उसने तो अलग दुनिया बसा ली है
मेरे दिल के मकां में वो अभी तक यूं बसा क्यों है।

वो ग़म में है, रहे, मुझको भला क्यों फि़क्र हो उसकी
मेरी आंखों से आंसू का ये  दरिया-सा बहा क्यों है।

बिना बरसे ही रह जाना लिखा किस्मत में है इसकी
कोई बतलाए आखिर ये  उठी ‘वर्षा’, घटा  क्यों है।
           ❤ - डॉ वर्षा सिंह

World Heart Day, Ghazal Yatra

मंगलवार, सितंबर 22, 2020

कोई पूछे कि ये ग़ज़ल क्या है | शायरी में ग़ज़ल | ग़ज़ल पर शायरी | डॉ. वर्षा सिंह


डॉ. वर्षा सिंह 
                           
कोई पूछे कि ये ग़ज़ल क्या है, तो मैं कह दूं कि दिल का दरिया है।
अपनी कहने और उसकी सुनने का, ख़ूबसूरत सा एक ज़रिया है।
                - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह

  कवयित्री, लेखिका डॉ. (सुश्री) शरद सिंह का यह शेर ग़ज़ल को परिभाषित करने  वाला है। वैसे ये ग़ज़ल आख़िर है क्या ? तो इस प्रश्न के उत्तर में यही कहा जा सकता है कि यह काव्य की एक विधा है। चूंकि ग़ज़ल का अर्थ है प्रेमी-प्रेमिका का वार्तालाप अतः पहले गजल प्रेम की अभिव्यक्ति का सबसे सशक्त माध्यम थी, किन्तु धीरे-धीरे वक़्त के साथ इसमें बदलाव आया और प्रेम के अलावा अन्य विषय भी इसमें शामिल हो गए। ग़ज़ल फ़ारसी से उर्दू में आई, फिर उर्दू से हिन्दी में और फिर एक लम्बा भाषाई सफ़र तय करके क्षेत्रीय बोलियों में आ चुकी है। दुष्यंत कुमार ने अपनी हिन्दी ग़ज़लों से ग़ज़ल की दुनिया को नई पहचान दी। यानी अब वर्तमान में भाषाई बंधन से मुक्त हो चुकी ग़ज़ल।

'हफ़ीज़' अपनी बोली मोहब्बत की बोली
न उर्दू न हिन्दी न हिन्दोस्तानी
 - हफ़ीज़ जालंधरी

आज मैं यहां प्रस्तुत कर रही हूं कुछ ऐसे शेर और ग़ज़लें, जिनमें शायर ने अपने शेरों में ग़ज़ल को अपनी तरह से पारिभाषित करने के साथ ही शायरी, ग़ज़ल और शेर शब्द का बड़ी ख़ूबसूरती से इस्तेमाल किया है।

हम से पूछो कि ग़ज़ल क्या है ग़ज़ल का फ़न क्या 
चंद लफ़्ज़ों में कोई आग छुपा दी जाए 
- जां निसार अख़्तर

बक़द्रे शौक़ नहीं ज़र्फे तंगना-ए-ग़ज़ल।
कुछ और चाहिये वसुअत मेरे बयां के लिये। 
  - मिर्जा ग़ालिब
अर्थात् मेरे मन की उत्कट भावनाओं को खुलकर व्यक्त करने में ग़ज़ल का पटल बड़ा ही संकीर्ण हैं। मुझे साफ साफ कहने के लिये किसी और विस्तृत माध्यम की आवश्यकता है।

अपने लहजे की हिफ़ाज़त कीजिए 
शेर हो जाते हैं ना-मालूम भी 
- निदा फ़ाज़ली

डाइरी में सारे अच्छे शेर चुन कर लिख लिए 
एक लड़की ने मिरा दीवान ख़ाली कर दिया 
- ऐतबार साजिद

मुझ को शायर न कहो 'मीर' कि साहब मैं ने 
दर्द ओ ग़म कितने किए जम्अ तो दीवान किया 
- मीर तक़ी मीर

हमसे पूछो के ग़ज़ल मांगती है कितना लहू
सब समझते हैं ये धंधा बड़े आराम का है

प्यास अगर मेरी बुझा दे तो मैं मानूं वरना ,
तू समन्दर है तो होगा मेरे किस काम का है
- राहत इंदौरी

हज़ारों शेर मेरे सो गए काग़ज़ की क़ब्रों में 
अजब माँ हूँ कोई बच्चा मिरा ज़िंदा नहीं रहता 
- बशीर बद्र

छुपी है अन-गिनत चिंगारियाँ लफ़्ज़ों के दामन में 
ज़रा पढ़ना ग़ज़ल की ये किताब आहिस्ता आहिस्ता 
- प्रेम भण्डारी


मैं जिसे ओढ़ता बिछाता हूँ 
वो ग़ज़ल आप को सुनाता हूँ 

एक जंगल है तेरी आँखों में 
मैं जहाँ राह भूल जाता हूँ 

तू किसी रेल सी गुज़रती है 
मैं किसी पुल सा थरथराता हूँ 

हर तरफ़ एतराज़ होता है 
मैं अगर रौशनी में आता हूँ 

एक बाज़ू उखड़ गया जब से 
और ज़्यादा वज़न उठाता हूँ 

मैं तुझे भूलने की कोशिश में 
आज कितने क़रीब पाता हूँ 

कौन ये फ़ासला निभाएगा 
मैं फ़रिश्ता हूँ सच बताता हूँ 

- दुष्यंत कुमार      

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक
                      

ग़ज़ल में काफि़या-मतला मुहब्बत से सजाना है
हसीं लफ़्ज़ों की माला को करीने से बनाना है

जहाँ में प्यार का इज़हार करना है कठिन अब तो
अलग सूरत, अलग सीरत, बड़ा ज़ालिम जमाना है

बनावट में मिलावट के निराले ढंग मिलते हैं
सियासत ने सियासत से भरा अपना खज़ाना है

गुज़ारा भूख में जीवन जिन्होंने ग़ुरबतों में ही
ग़रीबों का बड़ी मुश्किल से बनता अशियाना है

नहीं टूटे कभी भी सिलसिला अशआर का इसमें
ग़जल में ‘रूप’ का मुश्किल हुआ मक्ता लगाना है

- डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक

  डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
                   

मैं ग़ज़ल की एक क़िताब हूं, मुझे साथ अपने रखा करो।
मिरी सांस-सांस है शायरी, मुझे तुम अदब से पढ़ा करो।

ये बहर की धूप है सुनहरी, ग़मे-ए-बारिशों से धुली हुई
इसे गर समझ ना पाओ तुम, ज़रा चांदनी में जला करो।

किसी रोज़ बैठो सुकून से, यूं ही हाथ, हाथ में डाल के
कभी अपने-आप से इस तरह, हरहाल तुम भी मिला करो।

मिरी चाहतों के क़ाफ़िए,  हो भूल जाने का डर "शरद"
इन्हें नोटबुक की बजाए तुम,  हथेलियों पे लिखा करो।

- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह

नसीम शाहजहांपुरी

                      

हुस्न माइल ब-सितम हो तो ग़ज़ल होती है 
इश्क़ बा-दीदा-ए-नम हो तो ग़ज़ल होती है 

फूल बरसाएँ कि वो हँस के गिराएँ बिजली 
कोई भी ख़ास करम हो तो ग़ज़ल होती है 

कभी दुनिया हो कभी तुम कभी तक़दीर ख़िलाफ़ 
रोज़ इक ताज़ा सितम हो तो ग़ज़ल होती है 

दामन-ए-ज़ब्त छुटे चूर हो या शीशा-ए-दिल 
हादसा कोई अहम हो तो ग़ज़ल होती है 

शिकन-ए-गेसू-ए-दौराँ ही पे मौक़ूफ़ नहीं 
उन की ज़ुल्फ़ों में भी ख़म हो तो ग़ज़ल होती है 

दर्द इस पर भी न कम हो तो ग़ज़ल होती है
जाम हो मय हो सनम हो तो ग़ज़ल होती है 

- नसीम शाहजहांपुरी

पंकज सुबीर
                            

 चाँद में है कोई परी शायद

इस लिए है ये चाँदनी शायद


लोग उस को मसीहा कहते थे

वैसे वो भी था आदमी शायद


दिल का दरवाज़ा खोल रक्खा है

यूँ ही आ जाएगा कोई शायद


साँस आती है साँस जाती है

इस को कहते हैं ज़िंदगी शायद


आप का ज़िक्र हो मुसलसल हो

बस यही तो है शाइ'री शायद


मेरे आँसू तुम्हारी आँखों में

अब भी बाक़ी है दोस्ती शायद

              - पंकज सुबीर

विजय वाते
                           

दर्द में उम्र बसर हो तो ग़ज़ल होती है
या कोई साथ अगर हो तो ग़ज़ल होती है

तेरा पैगाम मगर रोज़ कहाँ आता है
तेरे आने की ख़बर हो तो ग़ज़ल होती है

यूँ तो रोते हैं सभी लोग यहाँ पर लेकिन
आँख मासूम की तार हो तो ग़ज़ल होती है

हिंदी उर्दू में कहो या किसी भाषा मे कहो
बात का दिल पे असर हो तो ग़ज़ल होती है

ग़ज़लें अख़बार की ख़बरों की तरह लगती है
हाँ तेरा ज़िक्र अगर हो तो ग़ज़ल होती है

- विजय वाते

दिगम्बर नासवा
                            

मखमली से फूल नाज़ुक पत्तियों को रख दिया
शाम होते ही दरीचे पर दियों को रख दिया

भीड़ में लोगों की दिन भर हँस के बतियाती रही 
रास्ते पर कब न जाने सिसकियों को रख दिया

इश्क़ के पैगाम के बदले तो कुछ भेजा नहीं
पर मेरी खिड़की पे उसने तितलियों को रख दिया

नाम जब आया मेरा तो फेर लीं नज़रें मगर
भीगती गजलों में मेरी शोखियों को रख दिया

चिलचिलाती धूप में तपने लगी जब छत मेरी
उनके हाथों की लिखी कुछ चिट्ठियों को रख दिया 
      - दिगम्बर नासवा

वशिष्ठ अनूप
                           

निष्कलुष प्यार की भीनी-भीनी महक, ताजगी जैसे बच्चों की निश्छल हँसी,
इसमें शामिल है माटी का कुछ सोंधापन, खूँ-पसीने से हमने सँवारी गजल।

प्यार मीरा घनानंद रसखान का, पीर इसमें कबीरा निराला की है,
आज है अपनी कुटिया की रानी बनी, कल भिखारिन-सी थी दसदुआरी गजल।
              - वशिष्ठ अनूप

और अंत में मेरी यानी इस ब्लॉग की लेखिका डॉ. वर्षा सिंह की ग़ज़ल जो ग़ज़ल को ही समर्पित है -
  
 डॉ. वर्षा सिंह
                         

स्याह रातों में इक रोशनी है ग़ज़ल
धूप में छांह बन कर मिली है ग़ज़ल

भिन्न मिसरे बंधे एक ही डोर से
एकता की अनोखी लड़ी है ग़ज़ल

फ़ासलों में दिलासा दिलाती है ये
वस्ल की वादियों में नदी है ग़ज़ल

दिल के बहलाव का सिर्फ़ सामान है
तो किसी के लिए ज़िन्दगी है ग़ज़ल

क़ाफ़ियों से रदीफ़ों की है दोस्ती
हर बहर में संवर कर सजी है ग़ज़ल

दर्द-दुख है, समस्या ज़माने की है
लोग कहते इसे ये नयी है ग़ज़ल

फ़ारसी, अरबी, उर्दू से हिन्दी हुई
अब बुंदेली के रंग में  रंगी  है ग़ज़ल

मीर, ग़ालिब से दुष्यंत के बाद तक
आज "वर्षा" के दिल में बसी है ग़ज़ल

             ---------------

रविवार, सितंबर 20, 2020

ज़िन्दगी है ग़ज़ल | ग़ज़ल को समर्पित ग़ज़ल | डॉ. वर्षा सिंह

प्रिय ब्लॉग पाठकों, आज इस "ग़ज़लयात्रा" में प्रस्तुत है ग़ज़ल को ही समर्पित मेरी यह ग़ज़ल .... 

ज़िन्दगी है ग़ज़ल
         - डॉ. वर्षा सिंह

स्याह रातों में इक रोशनी है ग़ज़ल
धूप में छांह बन कर मिली है ग़ज़ल

भिन्न मिसरे बंधे एक ही डोर से
एकता की अनोखी लड़ी है ग़ज़ल

फ़ासलों में दिलासा दिलाती है ये
वस्ल की वादियों में नदी है ग़ज़ल

दिल के बहलाव का सिर्फ़ सामान है
तो किसी के लिए ज़िन्दगी है ग़ज़ल

क़ाफ़ियों से रदीफ़ों की है दोस्ती
हर बहर में संवर कर सजी है ग़ज़ल

दर्द-दुख है, समस्या ज़माने की है
लोग कहते इसे ये नयी है ग़ज़ल

धर्म की, जाति की बेड़ियों से परे
हर ज़ुबां को ये अपनी लगी है ग़ज़ल

वक़्त के साथ हरदम बदलती रही
वक़्त की नब्ज़ की डायरी है ग़ज़ल

तंज़ बन कर हुकूमत की आंखों चुभी
इश्क़ बन आंधियों में पली है ग़ज़ल

खुरदुरे रास्तों को लगाती गले
रेशमी ख़्वाब ले कर चली है ग़ज़ल

ज़ुल्म का सामना डट के करती रही
बेबसी में सहारा बनी है ग़ज़ल

घुंघरुओं की है रुनझुन सुनाती कभी
पीर-दरगाह में नात भी है ग़ज़ल

ये है क़ुर्बानियों की अजब दास्तां
हीर है तो कभी, सोहनी है ग़ज़ल

दी जो आवाज़ "बिस्मिल", भगत सिंह ने
बांध सिर पर कफ़न फिर उठी है ग़ज़ल

अब वो पहले सी सीमित नहीं जाम में
अब हक़ीक़त के दर पर खड़ी है ग़ज़ल

साज संतूर हो, या कि हो बांसुरी
दिल की घड़कन में हरदम बजी है ग़ज़ल

हाशिए में खड़े आमजन के लिए
अब तो बेशक मसीहा बनी है ग़ज़ल

महफ़िलों से निकल कर गली-गांव में
खेत-चौपाल में आ गयी है ग़ज़ल

बूढ़े मां बाप की फ़िक्र है गर इसे
खिलखिलाती सी नन्हीं परी है ग़ज़ल

फ़ारसी, अरबी, उर्दू से हिन्दी हुई
अब बुंदेली के रंग में  रंगी  है ग़ज़ल

मीर, ग़ालिब से दुष्यंत के बाद तक
आज "वर्षा" के दिल में बसी है ग़ज़ल

----------

प्रिय मित्रों, ग़ज़ल को समर्पित मेरी ग़ज़ल "ज़िन्दगी है ग़ज़ल" आज दिनांक 20.09.2020 को वेब मैगज़ीन "युवाप्रवर्तक" में प्रकाशित हुई है। 
हार्दिक आभार युवाप्रवर्तक 🙏💐🙏
Link  

#युवाप्रवर्तक #ग़ज़ल #ज़िन्दगी #ग़ज़लवर्षा

सोमवार, सितंबर 14, 2020

ग़ज़ल | हिन्द की शान हमेशा से सुहानी हिन्दी | हिन्दी दिवस 2020 | डॉ. वर्षा सिंह

हिन्दी दिवस दिनांक 14 सितम्बर पर विशेष ग़ज़ल

हिन्द की शान हमेशा से सुहानी हिन्दी

                  - डॉ. वर्षा सिंह

जल है गंगा का तो, यमुना का है  पानी हिन्दी
दिल के दरिया की निराली- सी रवानी हिन्दी

मां है संस्कृत तो सहेली सभी ज़ुबानें हैं
हिन्द की शान हमेशा से सुहानी हिन्दी

सूर, तुलसी की बही भक्ति की धारा इसमें
यही रसखान की,  रैदास की बानी हिन्दी

रंग इसके हैं कई, रूप कई हैं इसके
काव्यसरिता है, तो है लेख, कहानी हिन्दी

मां के आंचल सा है ममता का ख़जाना इसमें
प्रेम अपनत्व की नायाब निशानी हिन्दी

इक कसक सी यही चुभती है दिलों में "वर्षा"
बन सकी राष्ट्र की भाषा न सयानी हिन्दी

        ---------

मित्रों, हिन्दी दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं 🙏
आज युवाप्रवर्तक में हिन्दी दिवस संदर्भित मेरी यह ग़ज़ल प्रकाशित हुई है।


हार्दिक आभार युवाप्रवर्तक 🙏🌺🙏

https://yuvapravartak.com/?p=41220

 

शुक्रवार, सितंबर 11, 2020

शायरी में हिन्दी | हिन्दी दिवस 14 सितम्बर | डॉ. वर्षा सिंह

हिन्दी दिवस (14 सितम्बर ) की हार्दिक शुभकामनाएं !!!!
    यह सर्वविदित है कि 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा में हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया गया था। हिंदी के महत्व को बताने और इसके प्रचार प्रसार के लिए राष्ट्रभाषा प्रचार समिति के अनुरोध पर 1953 से प्रतिवर्ष 14 सितंबर को हिंदी दिवस के तौर पर मनाया जाता है।
   हिन्दी में ग़ज़ल कहने, लिखने की एक लम्बी परम्परा है। तो आज मैं बात करना चाहती हूं उन हिन्दी-उर्दू  ग़ज़लों, उन शेरों की, जिनमें हिन्दी भाषा के प्रति प्रेम की भावना स्पष्ट दृष्टिगोचर होती है। यहां प्रस्तुत हैं ऐसी ही कुछ ग़ज़लें, कुछ शेर....

लिपट जाता हूँ माँ से और मौसी मुस्कुराती है,
मैं उर्दू में ग़ज़ल कहता हूं हिन्दी मुस्कुराती है।

उछलते खेलते बचपन में बेटा ढूंढती होगी,
तभी तो देख कर पोते को दादी मुस्कुराती है,

तभी जा कर कहीं माँ-बाप को कुछ चैन पड़ता है,
कि जब ससुराल से घर आ के बेटी मुस्कुराती है

चमन में सुबह का मंज़र बड़ा दिलचस्प होता है,
कली जब सो के उठती है, तो तितली मुस्कुराती है

हमें ऐ ज़िन्दगी तुझ पर हमेशा रश्क आता है,
मसाइल से घिरी रहती है, फिर भी मुस्कुराती है

- मुनव्वर राणा  
------------------

यूँ तो समन्दरों से मेरी आशनाई है
प मेरी प्यास में भी अजब पारसाई है

राहत की बात ये है के बेदाग़ हाथ हैं
उरयानियत की हमने हिना कब लगायी है

छोटी को निगल जाएँ बड़ी मछलियां प मैं
ज़िंदा हूँ इनके दरमियाँ,क्या कम ख़ुदाई है ?

जा मैंने इस्तफादा किया अश्क से तो क्या
तुझको नमी क्या आँख की मैंने दिखाई है ?

इससे बड़ा मज़ाक़ तो होगा भी क्या भला
हिन्दू हैं,मुल्क हिंद है,हिंदी परायी है !

हमको तमाशबीन जो कहते हैं,हैफ़ है
और वो ? दुकान जिसने सदन में लगायी है

ये सोच कर के बात बिगड़ जाये ना कहीं
मैंने लबे-"हया" पे खमोशी सजाई है

प = पर
आशनाई= जान पहचान
पारसाई = सब्र ,संयम
इस्तफादा= फायदा उठाना
उर्यानियत =नग्नता
खमोशी= ख़ामोशी

- लता 'हया'
------------------------

दो- तिहाई विश्व की ललकार है हिंदी मेरी 
माँ की लोरी व पिता का प्यार है हिंदी मेरी ।

बाँधने को बाँध लेते लोग दरिया अन्य से 
पर भंवर का वेग वो विस्तार है हिंदी मेरी ।

सुर -तुलसी और मीरा के सगुन में रची हुई 
कविरा और बिहारी की फुंकार है हिंदी मेरी ।

फ्रेंच , इंग्लीश और जर्मन है भले परवान पर 
आमजन की नाव है, पतवार है हिंदी मेरी ।

चांद भी है , चांदनी भी , गोधुली- प्रभात भी ओ
हरतरफ बहती हुई जलधार है हिंदी मेरी ।

- रवीन्द्र प्रभात

-------------------
 
एक
अनगिन खूबी है हिंदी की, जितनी कहो गिनाते जाएं।
हिंदी की  उन्नति  से  जागे, सब की उन्नति की आशाएं ।

भिन्न-भिन्न भाषा के अक्षर, इसमें  एकाकार  हो   गए, 
यही  एकता  सूत्र  बनी है, यही  मिटाती  हर  बाधाएं ।

दो

सोचती हूं कि हिन्दी कहां खो रही
बढ़ रहा आंग्ल का ही है खाता-बही

एक पर  एक  ग्यारह   नहीं है पता
आज बच्चे  ‘इलेवन’ को  जानें सही

‘इंडिया’ जो कहें  आधुनिक-सा लगे
नाम ‘भारत’ तो मानो पुरातन वही

चाह मन की  ये  सबसे कहूं  आज मैं
काश! दुनिया की भाषा हो हिन्दी कभी 

- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
------------------

भारत की पहचान है हिंदी
जन जन का सम्मान है हिंदी

लेकिन क्यूँ लगती बेघर ये
झेल रही अपमान है हिंदी।

अपनेपन की शीतल सरिता
प्यारी एक जुबान है हिंदी।।

दुनिया में लहराती परचम
भाषा एक महान है हिंदी।।

बहती उत्तर से दक्षिण तक
एका की पहचान है हिंदी।।

मान दिलाये दूर देश में
गीता है कुरान है हिंदी।।

रहती है बंधकर नियम में
भाषा में विज्ञान है हिंदी।।

जोश जगाती रणवीरों में
तिरंगे का मान है हिंदी।।

वीरों की गाती गाथा है
इस मिट्टी की जान है हिंदी।।

 - सुरेन्द्र नाथ सिंह ‘कुशक्षत्रप’
------------------------

कितनी प्यारी ये मनभावन हिन्दी है
भारत की वैचारिक धड़कन हिन्दी है

जो लिखता हूँ हिन्दी में ही लिखता हूँ
मेरी ख़ुशियों का घर आँगन हिन्दी है

रफ़ी, लता,मन्नाडे को तुम सुन लेना
इन सबकी भाषा और गायन हिन्दी है

भारत में कितनी हैं भाषाएँ लेकिन
सारी भाषाओँ का यौवन हिन्दी है

पहले मैं अक्सर उर्दू में लिखता था
अब तो मेरा सारा लेखन हिन्दी है

मुझको तो लगती है ये भाषा अपनी
लेकिन कुछ लोगों की उलझन हिन्दी है

गर्व करे हर भारतवासी ये बोले
मेरे देश की भाषा पावन हिन्दी है

औरों की तो बात "समर" मैं क्या बोलूँ
मेरे माथे का तो चंदन हिन्दी है

- समर कबीर

----------------------

सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा
हम बुलबुलें हैं इसकी यह गुलिसतां हमारा

मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना
हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दोस्तां हमारा 

यूनान, मिस्र, रोमा सब मिट गए जहां से
अब तक मगर है बाकी नामों निशां हमारा 

कुछ बात है कि हस्ती मिटती मिटाये
सदियों रहा है दुश्मन दौरे जमां हमारा 

‘इक़बाल’ कोई महरम अपना नहीं जहां में
मालूम क्या किसी को दर्दे निहां हमारा 

- अल्लामा इक़बाल

----------------- 

संस्कारों की ये पिटारी है,
अपनी वाणी ही लाभकारी है ।

फूल अभिधा के लक्षणा लेकर,
व्यंजनाओं की ये तो क्यारी है ।

अपनी भाषा में बोलना सुनना,
भूलना भूल एक भारी है ।

ठेठ हिंदी का ठाठ तो देखो,
मन में रसखान के मुरारी है ।

कितनी भाषाएँ  हैं मनोरम पर,
सब में हिंदी बड़ी ही प्यारी है ।

अपने घर में दशा पराई सी,
देख कर मन बहुत ही भारी है ।

इंडिया अब कहो न भारत को,
'आरज़ू' अब यही हमारी है ।

- अंजुमन मंसूरी 'आरज़ू'
------------------
इन्ग्लिश से छिडी ज‍ग तो हिन्दी मे बोलिए
हिन्दी की है तरन्ग तो हिन्दी मे बोलिए
हिन्दी दिवस पे नेता ने हिन्दी मे ये कहा
हिन्दी है मदर टन्ग तो हिन्दी मे बोलिए

- वीनू महेन्द्र
-------------------

               
स्वार्थ में डूबे हुए हैं हाशिए
जर्जरित रिश्ते कोई कैसे सिए

मैं नदी बन भी गई तो क्या हुआ
कौन जो सागर बने मेरे लिए 

पर्वतों के पास तक पहुंचे नहीं
घाटियों ने खूब दुखड़े रो लिए

किस क़दर अंग्रेजियत हावी हुई
आप हिन्दी की व्यथा मत पूछिए 

सर्पपालन का अगर है शौक तो
आस्तीनों में न अपने पालिए

आजकल "वर्षा" रदीफ़ों की जगह
अतिक्रमित करने लगे हैं काफ़िए

 - डॉ. वर्षा सिंह

-----------------------

हिन्दी काव्य परम्परा और ग़ज़ल | डॉ. वर्षा सिंह

साहित्य को मनोवेगों की सृष्टि माना जाता है क्योंकि साहित्य भाषा के माध्यम से अंतःजनित अनुभूतियों को कलात्मक अनुभूति देता है। पद्य को गद्य का प्रतिपक्षी माना गया है। गद्य और पद्य में छंद, लय और प्रवाह का अंतर होता हैं। छायावादी युग में पद्य में चिंतन की अपेक्षा भावों की प्रधानता हुआ करती थी किन्तु आधुनिक काल में भाव और चिंतन समान रूप से काव्य में उपस्थित रहते हैं। कई बार चिंतन भावों से भी अधिक प्रतिशत में विद्यमान रहता है। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि आधुनिक युग के कवि का परिवेश के कटु यथार्थ से सरोकार बढ़ गया है। यदि बात की जाए हिन्दी में अपना विशेष स्थान बनाने वाली ग़ज़ल विधा का तो इसने अपने मूल अस्तित्व की भले ही एक लम्बी यात्रा की है किन्तु हिन्दी में ग़ज़ल की पहचान भावना से अधिक विचार प्रधान रही है।
हिन्दी में काव्य परम्परा संस्कृत की देन है। ग़ज़ल, हाइकू, साॅनेट जैसी विधाओं के पूर्व जो काव्य हिन्दी में रचा जा रहा था, उससे संस्कृत से विकसित काव्यशास्त्र के अनुरूप होने की अपेक्षा की जाती रही है। भारतीय काव्य शास्त्रियों ने काव्य को कवि का कर्म मानते हुए काव्य की परिभाषाएं दी हैं, जैसे - ‘‘कवि शब्दस्य कवृ वर्णे इत्यस्य धातोः। काव्य कर्मणों रूपम् ।’’ अर्थात् कवि शब्द की व्युत्पत्ति ‘‘कवृ’’ धातु से हुई है तथा कवि का कर्म ही काव्य है। आचार्य विद्याधर के अनुसार - ‘‘ कवयतीति इति कविः तस्य कर्मः काव्यम्।’’ अर्थात् कवि का कर्म ही काव्य है। प्राचीन काव्यशास्त्रियों द्वारा दी गई काव्य की परिभाषा आधुनिक युग में क्रमशः परिवेश के अनुकूल बदलती गई। महावीर द्विवेदी ने कहा कि ‘‘कविता वह प्रभावशाली रचना है, जो पाठक या श्रोता के मन में आनंदमयी प्रभाव डालती है।’’ काव्य के संबंध में द्विवेदी जी का यह भी विचार था कि ‘‘अंतःकरण्ी वृत्तियों के चित्र का नाम कविता है।’’ वहीं सुमित्रानंदन पंत कविता को परिभाषित करते हुए कहते हैं कि ‘‘ कविता हमारे परिपूर्ण क्षणों की वाणी है।’’
उत्तर आधुनिक काल आते-आते हिन्दी कविता में यथार्थ का प्रतिशत जिस प्रकार बढ़ता गया उसी प्रकार काव्य की परिभाषा भावप्रधान से चिन्तनप्रधान होती गई। धूमिल खरे-खरे शब्दों में कविता को परिभाषित करते हुए कहते हैं कि - ‘‘ कविता भाषा में आदमी होने की तमीज़ है।’’ अपनी इस परिभाषा को कविता में ढालते हुए धूमिल ने लिखा है - ‘‘ कविता/शब्दों की अदालत में /अपराधियों के कटघरे में /एक निर्दोष आदमी का हलफ़नामा है।’’ देखा जाए तो हिन्दी में ग़ज़ल का सफ़र कुछ इसी तरह शुरू होता है। भारतेंदु युग से हिन्दी में ग़ज़ल का जो सृजन आरम्भ हुआ वह दुष्यंत कुमार तक पहुंच कर सांसारिक यथार्थवाद में प्रवेश कर गया। लेकिन काव्य कितना भी यथार्थवादी क्यों न हो जाए उसकी ज़मीन तो भावनाओं की रहती है इसलिए हिन्दी ग़ज़ल में खुरदुरे यथार्थ के साथ रूमानियत भी शब्दों ढलती आ रही हैं।
शायरी में मिलन (वस्ल) और विछोह (जुदाई) का वर्णन हरेक शायर अपनी-अपनी तरह से करता है। मिलन और विछोह के बीच उलाहने का दौेर भी चलता है। यह उलाहना कभी मिलता है तो कभी दिया जाता है। उलाहना देने का भी अपना शऊर होता है, जिसे शायरी की दुनिया में बख़ूबी निभाया जाता है।
प्रेम एक ऐसी भावना है जो सुख और दुख दोनों से सरोकार रखती है। व्यक्ति जब प्रेम की सफलता से प्रसन्न रहता है तब उसे दुनिया खुशियों भरी दिखाई देती है। उस स्थिति में उसे फूल, पत्ते, चांद, तारे यहां तक कि तोता, मैना भी प्रेम के गीत गाते सुनाई देते हैं। वहीं प्रेम में असफलता मिलने पर दुनिया के सारे दृश्य दुखदाई लगने लगते हैं। एकांत अर्थात् तनहाई भाने लगती है। उस तनहाई में भी यही इच्छा कुरेदती रहती है कि बिछुड़ा हुआ प्रिय किसी भी स्थिति में आ कर मिला करे, भले ही यह मिलन दुख को और बढ़ा क्यों न दे। यह एक बहुत ही भावुक सम्वेग है। जहां एक पल यह तमन्ना जागती है कि उसका प्रिय किसी न किसी बहाने उससे आ कर मिले, भले दोनों में अलगाव हो चुका हो, वहीं दूसरे पल वह खुद बोल उठता है कि अब मिलने की ज़रूरत नहीं है। प्रेम में अलगाव की स्थिति एक विचित्र मनोदशा जगा देती है जिसमें एक पल देखने की ललक जागती है तो दूसरे पल कभी न देखने की हठधर्मिता जागने लगती है और इसी के साथ दूसरों के दुख-दर्द भी दिखाई देने लगते हैं।

कविता और गीत की तुलना में ग़ज़ल शिल्प के स्तर पर एक विशिष्ट और अलग विधा है। एक ही ग़ज़ल विचारों और अभिव्यक्तियों के कई सारे पुष्पों के गुलदस्ते की तरह होती है। अपने तमाम शेरों में शायर प्रेम की कोमल भावना को ले कर कुछ ख़ास कहने की कोशिश करता है। यह कोशिश किसी सन्देश, किसी प्रतिबद्धता,किसी प्रतिकार,किसी प्रतिरोध या जिजीविषा के रूप में सामने आती है। हर ग़ज़ल का एक- एक शेर प्यार को परिभाषित करते हुए उसके विपरीत पक्ष को भी उकेरता चलता है। समकालीन ग़ज़लों में यदि व्यंग्य है, उलाहना है, तक़रार है, नसीहत है तो समाज की वास्तविकता भी है।