प्रिय ब्लॉग पाठकों, आज विश्व हृदय दिवस है
❤ यानी दिल का दिन 😊
❤ Happy World Heart Day ❤
दरअसल दुनिया भर के तमाम लोगों को हृदयरोगों के प्रति जागरूक करने के उद्देश्य से वर्ष 2000 में 'विश्व हृदय दिवस' मनाने की शुरुआत की गई। पहले यह सितम्बर के अंतिम रविवार को मनाया जाता रहा था, लेकिन 2014 से इसे प्रति वर्ष 29 सितम्बर के दिन मनाया जाने लगा। 'विश्व स्वास्थ्य संगठन' (डब्ल्यूएचओ) की भागीदारी से स्वयंसेवी संगठन 'वर्ल्ड हार्ट फेडरेशन' हर साल 'विश्व हृदय दिवस' मनाता है।
इस वर्ष विश्व हृदय दिवस यानी World Heart Day की थीम है -
Use heart to beat cardiovascular disease.
अर्थात् हृदय रोग को हराने के लिए दिल का उपयोग करें।
यूं तो दिल के उपयोग की बात यहां भौतिक रूप से हृदय के स्वास्थ्य को ध्यान में रख कर की गई है लेकिन जब बात 'दिल' और 'दिल के रोग' की हो तो .....और शायरों से बेहतर दिल के हालात से भला कौन वाकिफ़ होगा 😊
जी हां, दुनिया में शायद ही कोई ऐसा शायर होगा जिसने दिल को ले कर कोई शायरी नहीं की होगी। यूं भी शायरी का वास्ता दिमाग़ से कम दिल से ही ज़्यादा होता है।
तो चलिए इस ग़ज़लयात्रा में आज प्रस्तुत कर रही हूं 'दिल' से वाबस्ता कुछ चुनिंदा शेर और ग़ज़लें.....
दिल न होता तो कोई चीज़ न होती दुनिया
दिल भी क्या चीज़ है दुनिया पे मिटा जाता है
❤ - शफ़ी मंसूर
एक ही सी तन्हाई एक ही सा सन्नाटा
दश्त क्या है दिल क्या है क्या तुझे बताऊँ मैं
❤ - जाफ़र शिराज़ी
दिल-ए-नादां तुझे हुआ क्या है
आख़िर इस दर्द की दवा क्या है
❤ - मिर्ज़ा ग़ालिब
दिल भी पागल है कि उस शख़्स से वाबस्ता है
जो किसी और का होने दे न अपना रक्खे
❤ - अहमद फ़राज़
नुकताचीं है, ग़मे-दिल उसको सुनाये न बने
क्या बने बात, जहां बात बनाये न बने
मैं बुलाता तो हूं उसको, मगर ऐ जज़बा-ए-दिल
उस पे बन जाए कुछ ऐसी, कि बिन आये न बने
❤ - मिर्ज़ा ग़ालिब
हर धड़कते पत्थर को लोग दिल समझते हैं
उम्रें बीत जाती हैं दिल को दिल बनाने में
❤ - बशीर बद्र
मोहब्बत रंग दे जाती है जब दिल दिल से मिलता है
मगर मुश्किल तो ये है दिल बड़ी मुश्किल से मिलता है
❤ - जलील मानिकपूरी
बुत-ख़ाना तोड़ डालिए मस्जिद को ढाइए
दिल को न तोड़िए ये ख़ुदा का मक़ाम है
❤ - हैदर अली आतिश
कह दो इन हसरतों से कहीं और जा बसें
इतनी जगह कहाँ है दिल-ए-दाग़-दार में
❤ - बहादुर शाह ज़फ़र
दिल दे तो इस मिज़ाज का परवरदिगार दे
जो रंज की घड़ी भी ख़ुशी से गुज़ार दे
❤ - दाग़ देहलवी
आप दौलत के तराज़ू में दिलों को तौलें
हम मोहब्बत से मोहब्बत का सिला देते हैं
❤ - साहिर लुधियानवी
दिल चीज़ क्या है आप मिरी जान लीजिए
बस एक बार मेरा कहा मान लीजिए
❤ - शहरयार
शाम भी थी धुआँ धुआँ हुस्न भी था उदास उदास
दिल को कई कहानियाँ याद सी आ के रह गईं
❤ - फ़िराक़ गोरखपुरी
दर्द हो दिल में तो दवा कीजे
और जो दिल ही न हो तो क्या कीजे
❤ - मंज़र लखनवी
दिल पे आए हुए इल्ज़ाम से पहचानते हैं
लोग अब मुझ को तिरे नाम से पहचानते हैं
❤ - क़तील शिफ़ाई
कभी दिल में आरज़ू-सा, कभी मुँह में बद्दुआ-सा
मुझे जिस तरह भी चाहा, मैं उसी तरह रहा हूँ
मेरे दिल पे हाथ रक्खो, मेरी बेबसी को समझो
मैं इधर से बन रहा हूँ, मैं इधर से ढह रहा हूँ
❤ - दुष्यंत कुमार
बग़ावत के कमल खिलते हैं दिल की सूखी दरिया में।
मैं जब भी देखता हूँ आँख बच्चों की पनीली है।
❤ - अदम गोंडवी
दिल भी इक ज़िद पे अड़ा है किसी बच्चे की तरह
या तो सब कुछ ही इसे चाहिए या कुछ भी नहीं
❤ - राजेश रेड्डी
ज़ज़्बात के बिन, ग़ज़ल हो गयी क्या
बिना दिल के पिघले, ग़ज़ल हो गयी क्या
नहीं कोई मक़सद, नहीं सिलसिला है
बिना बात के ही, ग़ज़ल हो गयी क्या
नहीं कोई कासिद, नहीं कोई चिठिया
बिना कुछ लिखे ही, ग़ज़ल हो गयी क्या
जरूरत के पाबन्द हैं, लोग अब तो
बिना दिल मिले ही, ग़ज़ल हो गयी क्या
❤ - डॉ. रूपचंद्र शास्त्री मयंक
खोल दें हम अपने दिल की डायरी।
फिर करें कुछ कच्ची-पक्की शायरी।
बोझ लें हम क्यूं भला, हर बात का
ज़िंदगी झिलमिल करें ज्यों फुलझरी।
आलमारी में रखे कुछ शब्द ढूंढे
फिर करें बातों में कुछ कारीगरी।
बोतलों के जिन्न-सी हर दुश्मनी
भूल सब आओ करें कुछ मसखरी।
कह रही सब से 'शरद', तुम भी सुनो
दिल की ख़ातिर भी रखो कुछ बेहतरी।
❤ - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
मेरी यादों में आके क्या करोगे
आस दिल में जगा के क्या करोगे
ज़माने का बड़ा छोटा सा दिल है
सबसे मिल के मिला के क्या करोगे
अगर राहों में ही वीरानियाँ हों
इतनी बातें बना के क्या करोगे
नफरतें और बढ़ जाएंगी दिल में
ऐसी बातों में आ के क्या करोगे
जो दिल नाआशना ही हो चुके हों
फ़क़त रिश्ता बना के क्या करोगे
❤ - शाहनवाज़ 'साहिल'
दर्दे दिल की लौ ने रौशन कर दिया सारा जहां
इक अंधेरे में चमक उट्ठी कि जैसे बिजलियां
❤ - देवी नागरानी
ए मेरे दिल तुझे हुआ क्या है
बस सुबह से बुझा बुझा सा है ।
क्या किसी ने तुझे कहा कुछ है
पर किसी ने तुझे कहा क्या है ।
❤ - सुधेश
हवा पानी नही मिलता वो पत्ते सूख जाते हैं
लचीले हो नही सकते शजर वो टूट जाते हैं
मुझे आता नही यारों ज़माने का चलन कुछ भी
वो मेरी बात पे गुस्से में अक्सर रूठ जाते हैं
गुज़रती उम्र का होने लगा है कुछ असर मुझपे
जो अच्छे शेर होते हैं वो अक्सर छूट जाते हैं
अतिथि देव भव अच्छा बहुत सिद्धांत है लेकिन
अतिथि बन के आए जो मुसाफिर लूट जाते हैं
न खोलो तुम पुरानी याद के ताबूत को फिर से
कई लम्हे निकल के पेड़ पे फिर झूल जाते हैं
हमारे दिल के दरवाजे पे तुम दस्तक नही देना
पुराने घाव हल्की चोट से ही फूट जाते हैं
❤ - दिगंबर नासवा
दिवाली थी तो चरागों का एहतराम किया,
दिल अपने जलाए और तेरे नाम किया।
❤ - नीतिश तिवारी
फेसबुक से यूँ हटाना बस में था ।
अब जरा दिल से हटाकर देखिये ।।
आप मेरे इश्क़ के काबिल तो हैं ।
हो सके तो दिल मिलाकर देखिये ।।
दीन हो जाए न ये बर्बाद अब ।
मत हमें नज़रें झुकाकर देखिये ।।
कत्ल होने का इरादा था मेरा ।
बेवजह मत आजमाकर देखिये ।।
धड़कने देंगी गवाही फ़िक्र की ।
खत मेरा दिल से लगाकर देखिये ।।
❤ - नवीन मणि त्रिपाठी
चाहता तो वह मुझे दिल में भी रख सकता था
मुनासिब हरेक को चार दीवारियाँ नहीं होती
कुछ तो होता होगा असर दुआओं का भी
सिर्फ दवाओं से ठीक बीमारियाँ नहीं होती
❤ - कविता रावत
अपना मक़ाम दिल के तेरे बीचो बीच था
मुश्क़िल हमें था जाना वहाँ तक मगर गए
हो उस निगाहे लुत्फ़ की तारीफ़ किस तरह
जिसकी बिनाहे शौक नज़ारे सँवर गए
जाँबर सभी थे जान बचाकर लिए निकल
हम ही थे इक जो तेरी अदाओं पे मर गए
तो फिर नहीं बुलाएँगे ता’उम्र आपको
ग़ाफ़िल जी आप दिल से हमारे अगर गए
❤ - चन्द्र भूषण मिश्र ग़ाफ़िल
तुझे चाहना, तुझे सोचना अच्छा लगता है,
मात्र कल्पनाओं में मिलना अच्छा लगता है!!
बंद आँख से स्वप्न मिलन के प्रायः हैं देखे,
खुली पलक से तेरा सपना अच्छा लगता है!!
देखा नहीं तुझे है अब तक फिर भी जाने क्यों,
तेरा नाम जुबां पे रखना अच्छा लगता है!!
अपने गीतों में, कविता में क्यों न तुझे ढालूँ,
ग़ज़ल बनाकर दिल पर लिखना अच्छा लगता है!!
हर धड़कन में तू शामिल है, प्रेम रतन धन तू,
"तू है मात्र हमारी" कहना, अच्छा लगता है..!!
तेरे साथ बैठ कर सागर तट पर रातों में,
उठती गिरती लहरें गिनना अच्छा लगता है..!!
कुछ अपने कुछ तेरे मन की बातें कानों में,
धीरे-धीरे कहना सुनना अच्छा लगता है..!!
❤ - विद्या भूषण मिश्र " भूषण"
और अंत में प्रस्तुत है मेरी यानी इस ब्लॉग लेखिका डॉ. वर्षा सिंह की एक ग़ज़ल -
चले थे साथ, अब राहें अलग अपनी जुदा क्यों हैं ।
नहीं दिल की कोई ग़लती तो पाता ये सज़ा क्यों है।
मुहब्बत के जुनू वाली ये बातें तो पुरानी हैं
ये तूफां-सा मगर सीने में आखि़र अब उठा क्यों हैं।
कोई आवाज़ देता है किसी को़, चौंकती हूं मैं
पुकारा है मुझे उसने ये धोखा-सा हुआ क्यों है।
न जाने कब से उसने तो अलग दुनिया बसा ली है
मेरे दिल के मकां में वो अभी तक यूं बसा क्यों है।
वो ग़म में है, रहे, मुझको भला क्यों फि़क्र हो उसकी
मेरी आंखों से आंसू का ये दरिया-सा बहा क्यों है।
बिना बरसे ही रह जाना लिखा किस्मत में है इसकी
कोई बतलाए आखिर ये उठी ‘वर्षा’, घटा क्यों है।
❤ - डॉ वर्षा सिंह