Dr. Varsha Singh |
ग़ज़ल
वक़्त गुज़र जाता है
- डॉ. वर्षा सिंह
यादें बाकी रह जाती हैं, वक़्त गुज़र जाता है।
जिसे भूलना चाहो अक्सर, वही नज़र आता है।
जीवन की यह नदी डूब कर, पार इसे करना है,
मन में जिसके संशय हो वह, नहीं उबर पाता है।
अहसासों की दहलीज़ों को, साफ़ करो फिर देखो,
हर पल अपने साथ हमेशा, नई ख़बर लाता है।
दर्द ज़माने भर का जिसने, पाल लिया हो दिल में,
इसमें दो मत नहीं वही तो, गीत मधुर गाता है।
सूरज का दिन से है जैसा, चंदा का रातों से
"वर्षा" का बादल से वैसा ही बेहतर नाता है।
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मेरी यह ग़ज़ल आज web magazine युवा प्रवर्तक के अंक दिनांक 29.05.2020 में प्रकाशित हुई है।
युवा प्रवर्तक के प्रति हार्दिक आभार 🙏
मित्रों, यदि आप चाहें तो पत्रिका में इसे इस Link पर भी पढ़ सकते हैं ...
http://yuvapravartak.com/?p=33828