गुरुवार, अक्तूबर 01, 2020

बूढ़ी आंखें | ग़ज़ल | अंतर्राष्ट्रीय वृद्ध दिवस | डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

बूढ़ी आंखें
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                       - डॉ. वर्षा सिंह

वक्त का दरपन बूढ़ी आंखें 
उम्र की उतरन बूढ़ी आंखें 

कौन समझ पाएगा पीड़ा 
ओढ़े सिहरन बूढ़ी आंखें 

जीवन के सोपान यही हैं 
बचपन, यौवन, बूढ़ी आंखें 

चप्पा चप्पा बिखरी यादें 
बांधी बंधन बूढ़ी आंखें 

टूटा चश्मा घिसी कमानी 
चाह की खुरचन बूढ़ी आंखें 

एक इबारत सुख की ख़ातिर 
बांचे कतरन बूढ़ी आंखें 

सपनों में देखा करती हैं
"वर्षा"- सावन बूढ़ी आंखें

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अंतरराष्ट्रीय वृद्ध दिवस ~ ग़ज़लयात्रा