बूढ़ी आंखें
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- डॉ. वर्षा सिंह
वक्त का दरपन बूढ़ी आंखें
उम्र की उतरन बूढ़ी आंखें
कौन समझ पाएगा पीड़ा
ओढ़े सिहरन बूढ़ी आंखें
जीवन के सोपान यही हैं
बचपन, यौवन, बूढ़ी आंखें
चप्पा चप्पा बिखरी यादें
बांधी बंधन बूढ़ी आंखें
टूटा चश्मा घिसी कमानी
चाह की खुरचन बूढ़ी आंखें
एक इबारत सुख की ख़ातिर
बांचे कतरन बूढ़ी आंखें
सपनों में देखा करती हैं
"वर्षा"- सावन बूढ़ी आंखें
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