वसंत की तलाश
-डॉ. वर्षा सिंह
पत्तियां झुलस चुकी हैं, फूल सूख जाएगा
ये धूप का शहर मुझे इसीलिए न भाएगा
आदि कवि ने था रचा श्लोक "मा निषाद" का
है आज किसमें ताब जो विषाद से निभाएगा
दर्द में दबा है जो, वो बीज हो के अंकुरित
शब्द और सृजन के बीच फ़ासला मिटाएगा
जिस वसंत की तलाश में गुज़र गई उमर
आस है बंधी हुई कभी यहां वो आएगा
जो छलक रहा है आज, अश्रु बन के आंख से
शुक्र बन के भोर से, नभ पे झिलमिलाएगा
सुख जो क़ैद में है "वर्षा", देखना वो एक दिन
नीर की तरह स्वयं ही रास्ता बनाएगा
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(मेरे ग़ज़ल संग्रह "सच तो ये है" से)